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Wednesday 22 April 2020

SHABAR MANTRA


1.बन्ध्या स्त्री की चिकित्सा कामन्त्र
कृष्ण मन्त्र

ओऽऽऽऽऽम् गुरुदेवाय नमः।
ओऽऽऽऽऽम् श्री कृष्णाये नमः।
ओऽऽऽऽऽम् श्री विष्णुयाये नमः।
ओऽऽऽऽऽम् श्री सूर्याय नमः।
ओऽऽऽऽऽम् श्री देवेन्द्राय नमः।
ओऽऽऽऽऽम् महादेवाय नमः।
माही का कोठा, कोठे में नारी।
नारी में नाड़ी, नाड़ी में प्राण।
आंखों में चितवन, ओठों पै तान।
नाड़ी में रास रचावे किसन भगवान।
सांस दे, शक्ति दे, प्रेम का वरदान दे।
राख बीच विष्णुरूप पुत्ररत्न दान दे।
जा अब तनबीच, मन और प्राण बीच।
हृदय बीच, गर्भ बीच, नाभि के प्राण बीच।
मूल बीच के तू सिर में समाना।
हृदय बीच के तू नाभि में जा।
ओऽऽऽऽऽम् नमः देव तुझे भक्ति की आन।
गुरु की शक्ति और मन की शक्ति की आन।
ओऽऽऽऽऽम् लिं लिं लिं यं फट् स्वाहा।

इस मन्त्र की सिद्धि सवा लाख मन्त्र जपने से होती है। यह श्रीकृष्ण का मन्त्र है। विष्णुं कृपा  से ही पुरुष में शुक्राणु एवं स्त्री में डिम्ब का निर्माण होता है। वैज्ञानिक शब्दों में कहें तो नाभिकीय  कण सदा नाभिक से निकलता है। यदि नाभिक या अपने अन्दर के विष्णु सशक्त नहीं हूए तो डिम्ब या शुक्राणु का बीज ही नहीं निकलेगा।
स्त्रियों के लिए श्रीकृष्ण की पूजा-आराधना इसलिए उचित है कि राम में मर्यादा  है ,विष्णु में श्रद्धा (आदरभाव)-ये दोनों भाव रतिक्रीड़ा में बाधक होते हैं। अतः श्रीकृष्ण का प्रेमी या मीत भाव ही उचित है। वाममार्ग में काली का आह्वान किया जाता है, जिसकी प्रचण्ड शक्ति विष्णु अर्थात् हृदय केन्द्र को जबरदस्ती सशक्त बनने पर विवश कर देती है।
इस मन्त्र को 108 बार प्रतिदिन 21 दिन तक रात्रि में 9 से 12 (यह देख लेना चाहिए की यह क्रिया ऋतु के बाद की जाती है) तक की जाती है। इस 21 दिन तक स्त्री को पूर्ण स्वच्छ, प्रसन्न और कृष्ण भाव में डूबना चाहिए। मन्त्र पाठ के साथ गाय और बकरी का घी स्त्री के चांद पर डालते रहना चाहिए। कान और नाक में भी डालें (एक बार)
इस तन्त्र क्रिया में स्त्री को प्रतिदिन अपने हाथों से खीर बनाकर पहले श्रीकृष्ण, फिर गुरु, फिर पति को खिलानी चाहिए और इसके बाद स्वयं भी खानी चाहिए। तन्त्र क्रिया के बीच स्त्री  को पति से अलग सोना चाहिए और घी, भात खाना चाहिए। दूध, हरी सब्जी अनुमेय है।
यदि बन्ध्यापन डिम्ब बनने के कारण है या अंगदोष के अतिरिक्त कोई कारण है, तो 100 प्रतिशत गारन्टी है कि वह सन्तानवती होगी।
2.मृतवत्सा का मन्त्र
हनुमान्जी का मन्त्र

छोटी-मोटी खप्पर।
तूं धरती कितना गुण?
जिय के बल काट कू जान विज्ञान
दाहिनी ओर हनुमान रटे।
बांयी ओर चील।
चहुं ओर रक्षा करे वीर वानर नील।
नील वानर की भक्ति लखि जाय।
जेहिकृपा मृतवत्सा दोष आय।
आदेश कामरु कामाख्या भाई का।
आज्ञा हाड़ि दासि चण्डी की दुहाई।

 यदि किसी विवाहिता का गर्भ बार-बार गिर जाता है या मृत बच्चा उत्पन्न होता है, तो गर्भ से पूर्व ही इस मन्त्र से 108 बार उसे अभिमन्त्रित करके समस्त उदर नाभि में कुम्हार के चाक की मिट्टी में नील मिलाकर मन्त्र पाठ करते लेप करना चाहिए। यह क्रिया 21 दिन तक करनी चाहिए।
उपर्युक्त विधि शास्त्रीय विधि है। इसमें पृथ्वी की तरंग और प्राणवायु को अभिमन्त्रित किया जाता है। मैंने इस पर कुछ विशिष्ट प्रयोग किये हैं; क्योंकि आज प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि शास्त्रीय विधियों से वांछित फल नहीं मिलता।
इसके लिए नील और कुम्हार के चाक की मिट्टी का लेप सम्पूर्ण बदन पर लगाना और रात में नौ बजे के बाद मिट्टी पर नंगे तलवों से आधा घण्टा चलना अत्यन्त लाभकारी होता है। 100 प्रतिशत सफलता मिलती है।
परन्तु इस प्रयोग से जादू-टोना या किये-कराये के कारण होने वाला गर्भपात नहीं रोका जा सकता। इसमें प्राकृतिक काकवत्सा या मृतवत्सा को ही फल मिलता है। प्राणायाम करना या तन्त्र विधि से चांद के बालों को खींचकर बांधना भी लाभकारी होता है।

3.कमर की पीड़ा का मन्त्र
गुरु मन्त्र

चलता आये।
उछलता आये।
भस्त करन्ता।
डह-डह जाये।
सिद्ध गुरु की आन।
महादेव की शान।
शब्द सांचा।
पिण्ड कांचा।
फुरे मन्त्र ईश्वरोवाचा।

 कमर दर्द स्त्रियों की एक विशेष समस्या है। यह आधुनिक युग में बहोत बड़ गया हैI मलहम आदि अस्थायी राहत प्रदान करते हैं; क्योंकि स्त्रियों के कमर दर्द का कारन कुछ आौर ही है। स्त्रियों की हड्डी में पृथ्वी की तरंग अधिक होती है। इससे वे लचीली और कोमल होतीं है। उसमें कठोरता का अभाव होता है। यह प्राकृतिक संरचना है। स्त्रियों में ही नहीं, हर मादा में यह स्थिति होती है। इस कारण से वह पुरुषों की अपेक्षा शरीर को अधिक लचीली स्थिति में ला सकती हैं।
आजकल सूर्य की तरंग पृथ्वी पर बढ़ गयी है। कारण वायुमण्डल में होने वाला  प्रदुषण है।इस कारण उनकी हड्डी का लचीलापन कम होता जा रहा है और स्वभाव की मृदुता भी गायब होती जा रही है। परन्तु शरीर का समीकरण पृथ्वी की तरंग से जुड़ा है। इस असन्तुलना के कारण ही कमर दर्द होता है।
उपर्युक्त मन्त्र का पाठ करते हुए स्त्री पर कूप का जल, तालाब का जल, नदी का जल गंगाजल मिलाकर बरगद का दूध उसमें डालें। इस जल को प्रतिदिन सात चिल्लू पीले और मन्त्र पाठ करके (विधि समझ लें) तलवों से सिर तक चिकनी मिट्टी में आलू की बराबर मात्रा मिलाकर, पीसकर 21 दिन लगाने, सुखाने और स्नान करने से कमर दर्द, अस्थि-जोड़ी का दर्द, (गठिया नहीं) का स्थायी निदान हो जाता है। इसके बाद तीन-चार महीने में एक बार लेप करें I प्रति महीने करें, तो यौवन, कान्ति, चमक बढ़ जायेगी।

4.योनि संकोचन मन्त्र

हे माता डाकिनी काम शक्ति दायिनी।
 भैरवनाभ-प्रिया काम नाड़ी वाहिनी।
योनि द्वार रक्षिका, महाशक्ति कालिका।
शक्ति दिखा मालिका, बना मुझे बालिका।
ओऽऽऽऽऽम् क्रं नं नं क्रां लिं फट् स्वाहा।

इस मन्त्र की आज की युवतियों को बहुत आवश्यकता है। विवाह पूर्व यौनाचार गर्भपात आज की प्रवृत्ति बन गयी है। विवाह अधिक उम्र में होता है। इससे काम जवाला नियन्त्रण असम्भव हो जाता है। यौनाचार या अन्य यौन कारणों से योनि में फैलाव जाता   इससे वे प्रथम रात्रि ही पति की दृष्टि में हीन हो जाती है और कलह, विद्वेष, घृणा, निराशा, दाम्पत्य जीवन का सत्यानाश कर देती है।
इस मन्त्र की क्रिया करने पर 41 दिन में योनि कसाव और योनि छिद्र कुंवारी कन्या की भांति हो जाती है।
भांग के बीज, पीपर, सोंठ और कुम्हार के चाक की मिट्टी को सिद्ध करवा लें। इसे काले कपड़े में लपेटकर बबूल की जड़ में दबा दें। एक हफ्ते तक रात्रि में सोते समय मन्त्र जाप करते रहें। इसके बाद इसे ले आयें। यह कार्य शनि को करें। बबूल की छाल (उसी पेड़ का) भी लायें।
इस छाल का रस कपड़े से निचोड़ें। भांग के बीज, पीपर, सोंठ को कूट-पीसकर छान लें। इसमें दो गुणा कुम्हार के चाक की मिट्टी मिलायें। इस मिश्रण को बबूल की छाल के रस में लेप बनाकर 21 रात सोते समय योनि पर लगायें और सूख जाने पर ही सोयें। योनि में इस मिश्रण को पोटली में बांधकर डालें।
5.वक्षों की कठोरता का मन्त्र

ओऽऽऽऽऽम् काममालिनी लक्ष्मीसखी मधुयामिनी।
ओऽऽऽऽऽम् ही ही ही पी पी फट् स्वाहा।

बहुत-सी स्त्रियों के स्तन ढीले हो जाते हैं। यह रक्त की कमी, असमय गर्भपात आदि से भी होता है और अन्य कारणों से भी। इससे वे असमय ही वृद्धा-सी लगने लगती हैं। यह क्रिया उनके लिए है।
इस मन्त्र में सिद्धि की नहीं, नाद के उच्चारण को भी समझना आवश्यक है। केवल इस मन्त्र के पाठ से भी 108 दिन में वक्षों की सुडौलता बन जाती है, तथापि इसके साथ निम्न प्रयोग करें
रात्रि में पीपर, लौंग, सोंठ और कुम्हार के चाक की मिट्टी को कूट-पीसकर-छानकर एरण्ड के पत्तों में लेपकर वक्षों पर बांधे। इसके बाद प्रातः स्नान के समय जैतून के तेल की मालिश करें। 21 दिन में वक्ष कठोर एवं पुष्ट हो जाते हैं।

6.फोते का मन्त्र-2
सूर्य मन्त्र

नमः सूर्यदेवा, नमः इन्द्रदेवा।
नमः नमः हे महादेवा।
हे महादेवा काली के जनकदेवा।
दूर करो व्याधि मोरी हे मोरे विश्वदेवा।
नमः क्रीं क्रीं क्रीं फट् स्वाहा।

 अण्डकोषों के बढ़ने से पुरुषों को रति में कठिनाई होती है और यौनशक्ति का ह्रास होता है। इसमें दो तरह की वृद्धि होती है। एक जल भर जाना, दूसरे मांस बढ़ जाना। पहले के लिए शल्यक्रिया आसान है, परन्तु दूसरे में शल्यक्रिया कठिन इसे सरल तरीके से तन्त्र-विधि द्वारा दूर किया जा सकता है।
उपर्युक्त मन्त्र को ब्रह्ममुहूर्त में सूर्योदय काल में 21 बार पढ़कर एरण्ड के पत्ते में, एरण्ड के बीज, नदी या तालाब की काली मिट्टी, बैंगन के बीज, पीपर, सोंठ-इन सबको पीसकर लेप लगाकर गरम करें और गरम-गरम बांधे। 21 दिन में कोष सामान्य हो जायेंगे।
7.स्तम्भन मन्त्र

नमः भैरवाय महाकाल रुद्राय नमः
नमः कामदेवाय कं कं कां कां कि फट् स्वाहा।

 इस मन्त्र को 41000 बार जपने से यह सिद्ध होता है। इसका जप आधी रातकिया जाता है।
ऐसे किसी व्यक्ति द्वारा, जो इस मन्त्र को सिद्ध किये हुए हो, एक घोड़े की नाल की अंगूठी  सिद्ध करवायें और उससे मन्त्र दान लेकर एक छिपकली की पूंछ का नुकीला हिस्सा प्राप्त करें I उसे अंगूठी में भरकर मध्यमा में पहनें। रति करें। जब तक अंगूठी रहेगी,स्खलन नहीं होगा I शरीर ही थक सकता है। इसके लिए बलवर्द्धक उपाय करें। प्रत्येक दो दिन पर पूछ बदल ले I

8.लिंगदोष निवारण मन्त्र

नमः सूर्यदेवा, नमः इन्द्रदेवा।
नमः नमः हे महादेवा।
हे महादेवा काली के जनकदेवा।
दूर करो व्याधि मोरी हे मोरे विश्वदेवा।
नमः क्रीं क्रीं क्रीं फट् स्वाहा।

सरसों के तेल में भंग के बीज, पीपर, सोंठ, बैंगन के बीज, बबूल की गोंद को पीस कर डालें और बोतल में बन्द करके 21 दिन धूप में रखें। बोतल लाल होनी चाहिए 21 केंचुआ पकड़कर आधा सेर (लिटर) पानी एवं यह मिश्रण डालकर तेल सहित धीमी आँच परगर्म करें I
इसे छानकर बोतल में बन्द करके फिर 21 दिन धूप में रखें। प्रत्येक दिन सूर्य को प्रणाम करके 21 मन्त्र का जाप करें।
इस तेल को चौथाई चम्मच लेकर लिंग पर रात्रि में मालिश करने पर टेढापना ढीलापन दूर हो जाता है। 21 दिन में।

9.नपुंसकता का मन्त्र
मन्त्र पूर्ववत्

 एक किलो गाय का घी लें। इसे कण्डे की आग पर उबालें। आक के 108 पीले  पत्ते  9 देसी छोटे बैंगन, एक छोटा देसी सूरन (ओल), एक किलो आलू-इन सबको कूटकर चार सेर पानी में मिलाकर घी डालें और चार सेर बकरी का दूध डालें।
तब तक गरम करें, चलायें, जब तक केवल घी बच जाये। इस घी को छानकर रख ले I इसका एक चम्मच सुबह-शाम गाय या बकरी के दूध के साथ लें। तीन दिन में शक्ति प्राप्त होगी I
10.नपुंसकता का मन्त्र

नमः आदेश गुरु का।
आदेश गुरु गोरख बाबा का।
जाग मच्छन्दर गोरख आया।
काम-कामिनी भोग है लाया।
ओऽऽऽऽऽम् कालिके महाचण्डिकाये नमः
क्रीं क्रीं क्रीं फट् स्वाहा।

वह नपुंसकता, जिसमें पुरुष स्वस्थ होते हुए भी रति में असमर्थ होता है, लिंग का उत्थान नहीं होता या वह प्रविष्ट नहीं होता या शीघ्र पतन हो जाता है। इसके लिए उपर्युक्त मन्त्रों से 1188 बार सिद्ध पुराना गुड़ प्राप्त करें। इसमें बरगद का दूध शनिवार को प्रात: बरगद की पूजा करके इतना डालें कि यह घुल जाये। उड़द की दाल को पीसकर गाय के घी में भूने और यह गुड़ डालकर हलुआ बनायें। इस हलुए का 50 ग्राम, 250 ग्राम बकरी के दूध के साथ पियें। तीन दिन में दोष दूर होगा।

11.मनचाहा पुत्र प्राप्ति मन्त्र

नमः गर्भकाकिणी विष्णुप्रिया मालिनी।
नमः कालिकाये महाकाल वासिनी।
नमः भैरवाय रूद्ररूप फट् स्वाहा।

 फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष में इस मन्त्र का प्रतिदिन 1188 मन्त्र का पाठ 9 दिन तक करवाते हुए घी, तिल, जौ, काले धतूरे और हल्दी को पीसकर लेप लगाने एवं सूखने पर स्नान करने पर, अनुष्ठानकाल में जिस तरह के पुत्र की कल्पना करें या पुत्री की कल्पना करें, वही गर्भधारण के बाद प्राप्त होगा। यह शत प्रतिशत सफल क्रिया होती है।
12.सन्तान प्राप्ति का मन्त्र

नमः कालिकाय देवी चामुण्डा।
महाशक्ति वाहिनी देवी महालक्ष्मी देवी चण्डिकाय।
यस्य कामिनी पुत्रवती कुरु-कुरु फट् स्वाहा।

यदि कोई पति-पत्नी स्वस्थ होने पर भी सन्तानरहित हैं और कोई कारण स्पष्ट नहीं होता, तो इस मन्त्र के पाठ के साथ काली का अनुष्ठान करवाकर मछली के तेल की दस बूंद प्रातः गरम पानी के साथ और रात में 50 ग्राम मदिरा के साथ सेवन करें। अगले ऋतुकाल की समयावधि में सन्तान ठहरेगी।

13.दाम्पत्य प्रेम बढ़ाने का मन्त्र

नमः मनोहराय नमः कृष्णाय नमः
नमः राधिकाये कृष्णा प्रिया विलासिनी नमः।
नमः राधे नमः कृष्णा नमः कामदेवाय नमः।
नमः प्रेम रास विलासिनी विष्णुरूप मोहिनी नमः।

इस मन्त्र का जाप प्रतिदिन 108 बार रात्रि में करें। 21 दिन में यह सिद्ध होता है। प्रतिदिन पति या पत्नी को रात में मन्त्र सुनाकर शयन करने से दिन-दिन प्रेम प्रगाढ़ होता है।

14.मासिक धर्म का मन्त्र

ओऽऽऽऽऽम् नमः चण्डिकाये,
नमः देवी महाकालिके,
जाग-जाग चण्डिका महामाया चामुण्डाये।
ओऽऽऽऽऽम् क्रीं क्रीं क्रीं फट् स्वाहा।

मासिक अवरुद्ध हो, तो मदिरा को शीशे के पात्र में रखकर उसमें एक शक्तिशाली चुम्बक  डाल दें और लाल कपड़े से बांधकर 21 दिन रात्रि में 108 मन्त्र का जाप करें। ईसे छानकर बोतल में बन्द कर लें। इस मदिरा से योनि प्रक्षालन करने एवं इसका एक-एक चम्मच चार बार पीने  से (गरम पानी के साथ) मासिक खुल जाता है।

15.ससुराल की स्त्रियों को वश में करने का मन्त्र

ओऽऽऽऽऽम् मोहिनी मोहिनी विष्णुप्रिया मोहिनी।
ओऽऽऽऽऽम् मातंगी महामया महाकाया हाकिनी।
ओऽऽऽऽऽम् नमः यों यों यों फट् स्वाहा।

 इस मन्त्र का 108 बार पाठ करके प्रात:काल पूजा करके तुलसी में जल  डालने क़े बाद। प्रत्येक को आग्रह के साथ तुलसी पत्र खिलायें। इस समय भृकुटियों पर ध्याना लगाइये  21 दिन में यह मनाया प्रभावी होता है।

16.मनोवांछित जीवनसाथी का मन्त्र
गुरु मन्त्र

नमः शिवाय नमः महादेवाय।
जैसे गौरा को तुम, जैसे सीता को राम।
जैसे इन्द्र को शयी, जैसे राधा को श्याम।
ऐसी ही जोड़ी हमारी बने महादेव।
तुम इस गुरु मन्त्र की आन।

प्रतिदिन मन्त्र दान करने वाले गुरु का ध्यान लगाकर शिवलिंग पर बेल पत्र अर्पण करें । एवं उस पर जल चढ़ाने से मनचाहा वर या दुल्हन प्राप्त होती है।

17.आधाशीशी का मन्त्र

ओऽऽऽऽऽम् नमः गणेशाय विजेश्वराय नमः
ओऽऽऽऽऽम् नासिका देव महादेवाय नम:

 चिड़चिड़ के बीज या गाय के गोबर का महीन धूल, सात मन्त्र पढ़कर नाक में डालें I  नकसीर हो या आधाशीशी, समाप्त हो जायेगा।

  18.दांत एवं कान के दर्द का मन्त्र

कनक प्रहार।
धन्धर छार।
प्रवेश कर डार-डार।
पात-पात, झार-झार।
मार-भार।
हुंकार-हुकार।
शब्द सांचा, पिण्ड कांचा क्रीं क्रीं।

आक के पत्ते पर सात बार मन्त्र पढ़कर उसमें गाय के घी को चुपड़कर इसका रस निचोरके और दोनों कान में डालें। दो पल में दर्द चला जायेगा।

19.तुतलाहट का मन्त्र

ओऽऽऽऽऽम्हं हं हं यं यं यंटंटंटं तं तं तं फट् स्वाहा।

1188 मन्त्रों से सिद्ध चांदी का तार या लौंग नाक को छिदवाकर पहनायें। 108 दिनों में तुतलाहट गायब हो जायेगी। बुध ग्रह की खराबी भी दूर हो जायेगी।

20.योनि संकोचन मन्त्र

नमः महादेव नमः नमः।
मन्मंध देव मारे तिरछा वाण।
वाण के मुख पर ज्योति छिटके।
इस ज्योति को बांधे विष्णु।
विष्णु की काकिनी चुग्गा-चुगे।
जय महाकाली कलकत्ते वाली।
शब्द सांचा पिण्ड कांचा।
फुरे मन्त्र ईश्वरोवाचा।

 एरण्ड के पत्ते पर सात मन्त्र पढ़कर पीपर को पीसकर लगायें; गरम करके योनि पर बांधे।
21.मूठ कील का मन्त्र

लोहे का कोठा वज्र कीवाड़।
उस परं नावों बारम्बार।
उसे नहिं पहिनहि एकहु बार।
एक पण्ठा अनण्डा बांधो।
उठो मूठि बांधो।
तीर बांधो।
 स्वर्ग इन्द्र बांधो।
पाताले वासुकी नाग बांधो।
हनुमान के पांव शरण।
पाद की शक्ति।
नरसिंह वादिकार।
खेल-खेलू, शाकिनी-डांकिनी।
सात सेतर की संकरी।
बारह मन के पहाड़।
तेही ऊपर बैठे, अब देवी चौताराकाय।
आन जंभाई-जभाई।
गोरख की दुहाई।
लोना की दुहाई।
तैंतीस कोटि देवताओं की दुहाई।
हनुमान की दुहाई।
काशी कोतवाल भैरों की दुहाई।
अपने नहीं कटारी।
मार देवता खेल आप लेई काशी आदि।
काशी पर पाप।
तेरे देवता पर कंध चरही I
काट जो मनमहं क्षोभ राख।

 यह मन्त्र सिद्ध होना चाहिए। सात-सात लौंग, सात तुलसी के पत्ते के साथ मन्त्र  पढ़कर तीन बार रख लें और एक-एककर 21 बार खिलायें। प्रत्येक बार मन्त्र पढ़ें। इससे माना। समाप्त हो जाता है।