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Wednesday 3 June 2020

महत्वपूर्ण मानस-मंत्र

महत्वपूर्ण मानस-मंत्र



महत्वपूर्ण मानस-मंत्र:ब्रह्मचर्य सभी सुखों का मूल मंत्र है और श्री हनुमान से बढ़कर ब्रह्मचर्य का आदर्श रूप नहीं है अतः श्री हनुमान की इसी शक्ति को आधार मानकर अग्रलिखित कुछ शारीरिक व्याधियों के निवारण के लिए मंत्र प्रयोगों की व्याख्या प्रस्तुत करने का एकमेव उद्देश्य यही है कि साधकों को लाभ मिले।

1.पेट दर्द निवारक मंत्र मंत्रः

नमो इट्ठी मीट्ठी भस्म कुरू कुरू स्वाहा।।

साधना विधि:-एक प्रयोग में यह मंत्र 1 लीटर (लगभग) शुद्ध जल को प्रतिष्ठित करने की सामर्थ्य रखता है। प्रयोग के लिए जल को (कुएं या बावड़ी का होना अनिवार्य है) कांसे के पात्र में ले जिसे प्रयोग की पूर्व रात्रि में गर्म कर खुली हवा में रख दिया गया हो। अगले दिन प्रातः काल दैनिक कर्म से निवप्त हो 11000 बार इस मंत्र का जाप जल को हनुमान प्रतिमा के सम्मुख रखकर करें। तत्पश्चात 81 फूंके जल में मारे एक अंजुली जल हनुमान चरणों में अर्पित करे दें। अब इस प्रतिष्ठत जल की चार बूंदे यदि सामान्य पेय जल में मिलाकर दे दी जाये तो स्थायी रूप से पेट दर्द चला जाएगा। जल को दीर्घावधि प्रयोग के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है पीड़ित व्यक्तियों की सेवार्थ प्रयोग किया जा सकता है।

2.आधा शीशी झाड़ना आधा शीशी की पीड़ा से छुटकारे हेतु दो मंत्रों का प्रावधान है। साधक किसी भी एक का चयन कर सकता है।

           मंत्र: वन में ढयाई अंजनी कच्चे वन फल खाय।
हांक मारी हनुमंत ने इस पिंड से आधासीस उतर जाय।

साधना विधि :-पीड़ित व्यक्ति को दक्षिणोन्मुख आसान पर बैठाये। अपने दाहिने हाथ में रोगी के सर पर हाथ रख, 100 बार मंत्रोच्चारण कर भभूत फूंके रोगी का दर्द आश्चर्य जनक रूप से समाप्त होगा।

मंत्र : लंका में बैठ के माथ हिलावे हनुमंत, सो देखिकें राक्षसगण पराय दुरन्त।
बैठी सीतादेवी अशोक वन में देखि हनुमान को आनंद भयी मन में। गई डर विषाद, देवी स्थित दरसाय.......... के सिर व्यथा पराय
................. के नहीं कछु पीर कुछ भार।

 साधना विधिः-स्वच्छ कपड़ा बिछाकर श्वेत वस्त्र धारण करवाकर रोगी व्यक्ति को दक्षिण की और पैर करके लेटने को कहें, फिर उसके भाल पर चंदन लगाये। फिर स्वयं के हाथ में "मंगा माला' ले मंत्रोच्चार के साथ सात बार फेंरे। तत्पश्चात रोगी के 21 चक्कर लगायें। रोगी को आराम की अनुभूति शीघ्र
ही होगी (मंत्र के खाली स्थान पर रोगी का नाम ले)

3. कर्ण रोग निवारणार्थ कान से संबंधित किसी भी प्रकार के रोग के लिए यह मंत्र अत्यंत असरकारक है।

मंत्रः वनरा गांकि वानरी तो डांटे हनुमान कंठ।
बिलारी बांधी थनैली कर्जूल सम जाइ।
श्रीराम चंद्र की बानी पानी पथ होइ जाइ।।

साधना विधिः-लाल रंग के वस्त्र से पीड़ित व्यक्ति के कान को ढककर उपरोक्त मंत्र का 11 बार उच्चारण कर भभूत मारें तथा लाल वस्त्र को 3 रात्रि निरंतर पीड़ित व्यक्ति के सिराहने रखे, स्मरण रहे कि रोगी पीड़ित कान की ओर सिराहना करके सोये चौथे दिन वस्त्र को नदी में विसर्जित कर आए। आते-जाते मौन धारण अनिवार्य है दायें, बायें और पीछे देखना वर्जित है। पूर्ण श्रद्धा विश्वास से की गई साधना शीघ्र फलदायी है।

4. दंत रोग निवारणार्थ मंत्र:

नमो आदेष गुरू को। वन में ढयाई अंजनी, जिनजाया हनुमान। कीड़ा, मकोड़ा तीनों भस्मल  गुरू की शक्ति, मेरी भक्ति, फुरो मंत्र ईश्वरों वाचा।।

साधना विधि:-दीपावली की मध्य रात्रि को प्रारंभ कर यह मंत्र 1 लाख की संख्या में पूर्ण करना चाहिये जब भी साधना के लिए बैठे तो घी का दीपक जलता रहना चाहिये "मूंगा धारण" करना चाहिये। इस प्रकार यह मंत्र प्रतिष्ठित हो जाएगा जब भी भविष्य में इसकी आवश्यकता पड़े तो नीम की टहनी से मंत्रोच्चारण करते हुए रोग को झाड़ना चाहिये, दंत संबंधी सभी रोग नष्ट होंगे।

5. नेत्र रोग निवारक मंत्र मंत्रः

ऊँ नमो वन में ढयाई वानरी जहां-जहां हनुमान
अंखियां पीर कषवारों गेहिया थने लाई परिडं जाय जमन्तर
फुरो मंत्र ईश्वरों वाचा।।

साधना विधिः किसी भी शनिवार या मंगलवार को प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में उठ, आवश्यकतानुसार शुद्ध जल तांबे के पात्र में ले 91 बार मंत्रोच्चारण करें प्रत्येक प्रत्येक बार मंत्र के बाद में फेंक दे। इस तरह जल सिद्ध होगा, फिर रोगी व्यक्ति से कहे कि वह पीड़ित नेत्र/नेत्रों पर सात छिंटे मारे। इस तरह प्रत्येक प्रकार के नेत्र संबंधी रोग का निवारण होता है।

6. विष उतारने हेतु

मंत्रः ऊँ पश्चिममुखाय गरूडाननाय
पंचमुख हनुमते मं मं मं मं मं सक विषहराय स्वाहा।।

 साधना विधिः मंत्र के प्रभावी असर हेतु साधक को दीपावली की अर्द्धरात्रि में साधना करनी चाहिये। इस हेतु 10,000 मंत्रोच्चारण कर मंत्र सिद्धि की जा सकती है। तत्पश्चात जब भी आवश्यकता हो पीड़ित अंग को भभूत से मंत्रोच्चारण करते हुए झाड़ने से बिच्छू, बरे, नाग अन्य विषधारी जीवों का विष
उतर जाएगा।

7.हनुमान प्रत्यक्ष साधना सिद्धि प्रयोग

मंत्र: ऊँ नमो हनुमंताय आवेशय आवेशय स्वाहा

 साधना विधि:-यह प्रयोग श्री हनुमान के प्रत्यक्ष दर्शन के लिए किया जाता है। केवल वहीं साधक इसे करने का संकल्प ले जो साधना अवधि में पूर्ण श्रद्धा भाव विश्वास रख सकें। किसी भी शनिवार या मंगलवार को ब्रह्ममुहूर्त में उठे सर्वप्रथम हनुमान जी की तस्वीर का दर्शन करें। (रात्रि में सोने के समय पास में या सामने तस्वीर रखी जा सकती है) स्नानादि नित्य कर्मो से निवृत हो मौन धारण करें पूरे दिन मौन रहे बुरे विचारों का त्याग करें। दिन में एक बार बिना नमक हल्दी का भोजन करें। साधना रात्रि में 9 से 1 बजे के बीच कभी भी शुरू की जा सकती है। उत्तर की ओर मुख हो " माला" से 151 जप करें, प्रातः नैवैध का भोग श्री हनुमान को लगाकर अपने लिए प्रसाद स्वरूप रखे शेष निर्धन व्यक्ति को दें ऐसा अनवरत 11 दिनों तक करें। हनुमान जी किसी भी रूप वेश में आपको दर्शन देंगे। आपमें यह सामर्थ्य हो कि आप अपने आराध्य को पहचानें।

8.सूर्य समान तेजस्वी होने हेतु

मंत्रः ऊँ नमो हनुमते रूद्रावताराय विश्वरूपाय अमित विक्रमाय
प्रकट पराक्रमाय महाबलाय सूर्यकोटि समप्रभाय रामदूताय स्वाहा।।

साधना विधिः-किसी भी महान विभूति के चेहरे पर अद्भूत तेज होता है, जो हर किसी को सहसा अपनी और आकृष्ट करता है। दूसरों पर प्रभाव के लिए नेत्र, मस्तक संपूर्ण चेहरे पर ही तेज की आवश्यकता होती है ऐसे तेजस्वी पुरूष को हर कार्य में सफलता मिलती है।
गाय के कच्चे दूध को हनुमान प्रतिमा के सामने रख यह मंत्र 501 बार उच्चारित करें तत्पश्चात दूध में 21 फूंक मारे फिर दुग्ध से अपने चेहरे पर लेप करें पुनः सात बार मंत्रोच्चारण के बाद शुद्ध जल से मुंह धोये ऐसा किसी भी मंगलवार या शनिवार को सूर्योदय के बाद सूर्यास्त से पूर्व करना चाहिये। 7 मंगलवार या शनिवार तक साधना करने से आश्चर्य जनक रूप से तेजस्विता प्राप्त होगी।

9.महत्वपूर्ण मानस-मंत्र

भूत भगाने के लिए

प्रनवऊ पवन कुमार खल बन पावक ग्यान धन। जासु हृदयं आगार बसंति राग सर चाप घर।।

विद्या प्राप्ति के लिए

बुद्धिहीन तनु जान मैं सुमिरों पवन कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार ।।

मुकदमें में विजय प्राप्ति के लिए

पवन तनय बल पवन समाना। बुद्धि विवेक विग्यान विधाना ।।

मस्तिष्क पीड़ा निवारण

हनुमान अंगद रन गाजे हांक सुनत रजनीचर भाजे।।

हनुमान जी की प्रसन्नता के लिए

सुमिर पवन सुत पावन नामूं। अपने बस करि राखे रामू ।।

विवाह हेतु

मास दिवस महुं नाथु आवा। तो पुनि मोहि जिअत नहि पावा।।

मानस मंत्र साधना-विधिः- मानस मंत्र की एक विशेषता यह भी है कि यह सभी मंत्र एक ही साधना-विधि द्वारा सिद्ध किए जा सकते है। किसी भी पवित्र दिवस को मंत्र सिद्धि के लिए चुना जा सकता है। मृगचर्म, व्याघ्र चर्म, लाल ऊन इन में से किसी का भी आसन, दक्षिणोन्मुखी कर रक्षा रेखा खींच लें। जिस किसी भी उद्देश्य से मानस मंत्र का जाप किया जाये, मध्य रात्रि से शुरू कर 108 मंत्रों से हवन करना चाहिये। हवन में अष्टांग सामग्री देशी घी, शक्कर, चंदन का बुरादा, तिल, अगर, नगर, नागर मोथा, कपूर, केसर, पंचमेवा (किशमिश, गोला, पिस्ता, काजू, अख रोट) जौ तथा चावल बराबर मात्रा में लेना चाहिये। इन सभी वस्तुओं का सम्मिलित भार एक सेर होना चाहिये।
मंत्रोच्चार के समय अंत में 'स्वाहा' का उच्चारण करते हुए समिधा अग्नि में आहूत करें। समिधा अनिवार्य रूप से पीपल, बड़, आम या नीम के वृक्ष की ही हो। हवन करने से मंत्र जागृत हो जायेगा, अब प्रातःकाल नियमित रूप से 21 दिन तक 108 "मूंगा माला जप करें, जो भी उस मंत्र के देवता है यथा भगवान राम, सीता या हनुमान, मंत्रोच्चारण से पूर्व उनका ध्यान करना चाहिये। अंत में भी देवता के प्रति पूर्ण समर्पण भावना रखें।







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