Apsara sadhnaनाभिदर्शना अप्सरा
अंग्रेजी
में मुहाबरा है। There is a woman behind every successful
man, अ्थात प्रत् क
सफल व्यक्ति के पीछे एक नारी होती है। इसमें कोई संदेह भी नहीं। ऊर्जा का स्त्रोत
तो नारी को ही माना गया है। इस बात को तो भारतीय दर्शन ने न केवल स्वीकार ही किया है अपितु उसे उपासना योग्य
तक बना दिया है। किंतु जहां किसी कलाकार अथवा
कवि की बात आती है, तो यही बात कुछ और भी अधिक विशिष्टता से मामने आती
है। आदिकाल से लेकर वर्तमान काल
तक जितने भी कलाकार हुए है उनके मानस में किसी न किसी नारी का बिम्ब रहा ही है। सृजन का मूल, उत्स व प्रेरणा कोई नारी ही रही है।
उनमें व सामान्य में अंतर केवल इतना हो होता है कि
जहाँं सामान्य मनुष्य के लिए नारी का मनुष्य अर्थ दैहिक भर ही होता है वहीं कवि
हृदय व्यक्ति के लिए वह उपासना जैसा स्थान रखता है। एक प्रकार से कहा जाए तो कोई भी कलाकार किसी भी नारी के
माध्यम से वस्तत: अपने हो हदय के सौन्दये को
प्रकट करता है। बाह्य स्वरूप अथवा अंतिम बिंदु पर बह निपेक्ष हो जाता है अरथिति वह ऐसी उपासना करते करते उस
बिंद पर पहँच जाता है जहाँ फिर उसे सम्पूर्ण विश्च ही सीन्दर्यमय दिखने लग
जाता है। इस विषय को सामान्य दृष्टि से नहीं वरन किसी कवि के हृदय से समझना होगा
तभी समझ
में आ सकगा कि कैसे महाकवि कालीदास ने प्रकृति के एक एक कण में सौन्दर्य देखा और उसे इस रूप में अंकते
किया कि आज तक उनकी समक क्षता कोई कर ही न सका। वे स्वयं में एक उपमा बन गए। आज तक किसी भी रचना
को उनके
द्वारा रचित कृतियों की कसौटी पर कस कर कहा जाता है कि वे स्वर्ण हैं। अथवा सामान्य लौह खंड। इससे अधिक किसी
कवि की सार्थकता क्या हो सकती है? मूलत:
राजकवि होते हुए भी वे स्वयं में अपने ऐश्वर्य, विलास, उमंग, ओज,प्रभाव, वर्चस्व, कला आदि में किसी भी राजपुरुष से कम
नहीं थे। महाराज भोज भी उनकी इन उपलब्धियों से अनभिज्ञ नहीं थे और परस्पर मित्र - भाव होने
के कारण अन्ततोगत्वा एक दिन कालीदास ने महाराज भोज के समक्ष इस रहस्य का
उद्घाटन भी कर दिया कि ऐसा सब कुछ उनके जीवन में कैसे संभव हो पा रहा है। राजा भोज के अत्यधिक हठ करने पर एक दिन
कालीदास ने राजा भोज के समक्ष नाभिदर्शना को प्रत्यक्ष प्रगट कर दिखा दिया, रूप में, सौन्दर्य में,
और यौवन में वह छलकते हुए जाम की तरह थी, उसका सारा शरीर गौर वर्ण और चन्द्रमा
की चांदनी
में नहाया हुआ सा लग रहा था, पुष्प
से भी कोमल और नाजुक नाभिदर्शना को कालीदास के कक्ष में थिरकते देख कर
गजा भोज अत्यधिक संयमित होते हुए भी
बेसुध से हो गए, उनकी आंखों के सामने हर क्षण
नाभिदर्शना ही दिखाई देती रही। साधना
ग्रंथों में नाभिदर्शना के बारे में जो कुछ मिलता है उसके अनुसार नाभिदर्शना, षोडश वर्षीय अत्यन्त सुकुमार और
सौन्दर्य की सम्राजञी है। उसका सारा शरीर
कमल से भी ज्यादा नाजुक और गुलाब से भी ज्यादा सुंदर है, उसके सारे शरीर से धीमी धीमी खुशबू प्रवाहित होती रहती
है, जो कि उसकी उपस्थिति का भान कराती रहती है, इस अप्सरा की काली और लम्बी आंखें, लहराते हुए झरने की तरह केश और चन्द्रमा की तरह लम्बी बांहें और सुन्दरता से लिपटा हुआ पूरा शरीर
एक अरजीब सी मादकता बिखेर देता है, और इसे इन्द्र का वरदान प्राप्त है, कि जो भी इमके सम्पर्क में आता है, वह पुरुष, पृर्ण रूप से रोगो से मुक्त होकर चिर
यौवनमय बन जाता है. उसके
शरीर का काया कल्प हो जाता है, और
पौरुष की दृष्टि से वह अत्यन्त प्रभावशाली
बन जाता है। और फिर नाभिदर्शना अप्सरा को विविध उपहार
देने का शौक है। जो पूरुष इसके सम्पर्क में आता है, उसे यह हीरे, मोती. स्वर्ण गुद्राओं से पवं विविध उपहारों से भर देती है, जीवन
भर उस पुरुष के अनुकूल रहतो हुई वह उसका प्रत्येक मामले में मार्गदर्शन
करती रहता है, भातृत्व की तरह कराती है, प्रेमिका की तरह सुख एवं आनन्द की
वर्षा करती रहती है।
विधि:-
नाभिदर्शना अप्सरा साधना
यह
एक दिन की साधना है, और कोई भी साधक इस साधना को सिद्ध कर सकता है। किसी भी शुक्रवार की रात्रि
को यह साधना सिद्ध की जा सकती है। इस
साधना की सिद्ध करने के लिए थोड़े ब्रहुत धैर्य की जरूरत है. क्योंकि कई बार पहली बार में सफलता नहीं भी मिल
पाती, तो साधक को चाहिए, कि वह इसी साधना को दूसरी बार या तीसरी बार
भी सम्पन्न करें, परतु अगले किसी भी शुक्रवार की रात्रि को ही यह साधना करें।
साधना
समय
यह
साधना रात्रि को ही सम्पन्न की जा सकती है, और
साधक चाहे तो अपने
घर में या किसी भी अन्य स्थान पर इस
साधना को सम्पन्न कर सकता है। किसी
भी शुक्रवार की रात्रि को साधक सुंदर, सुसज्जित
वस्त्र पहने, इसमें यह जरूरी नहीं है कि साधक धोती ही
पहिने, अपितु उसको जो वस्त्र प्रिंय हो, जो वस्त्र उसके शरीर पर खिलते हों, या जिन वस्त्रों को पहिनने से वह
सुन्दर लगता हो, वे वस्त्र धारण कर साधक उत्तर दिशा की
ओर मुंह कर आसन पर बैठे। बैठने
से पूर्व अपने वस्त्रों पर सुगन्धित इत्र का छिड़काव करें और पहले से ही दो सुंदर गुलाब को मालाए ला कर अलग
पात्र में रख दें। यदि गुलाब की, माला उपलब्ध न हो तो किसी भी प्रकार के
पुष्पों की माला ला कर रख सकता है। फिर
सामने एक रेशमी वस्त्र पर अद्वितीय 'नाभिदर्शना
महायंत्र' को स्थापित करें और केसर से उसे तिलक करें
यंत्र के पीछे नाभिदर्शना चित्र' को फेम में मढवा कर रख दें, और सामने सुगन्धित अगरबत्ती एवं शुद्ध
घृत का दौपक लगाएं। इसके बाद हाथ में जल लकर सकल्प
कर, कि मैं अमुक गोत्र, अमृक पिता का पूत्र, अमुक नाम का साधक, नाभदशना अप्सरा को प्रेमिका रूप में
सिधद करना चाहता हूं, जिससे कि वह जीवन भर मेरे वश में रहे, और मुझे प्रेमिका की तरह आनंद एवं ऐश्वर्य प्रदान करे। इसक बाद
नाभिदर्शना अप्मरा माला' से निम्न मंत्र जप संपत्न करें। इसमें 51 माला मंत्र जप उसी रात्रि को सम्पन्न
हो जानता चाहिए। हो सकता है, इसमें तीन,या चार घंटे लग सकते हैं ।अगर बीच में घुघुरू ओं को आवाज आए या किसी का स्पर्श करने का अनुभव हो तो साधक विचलित न हो और अपना ध्यान न खोये
अपित् 51
माला मंत्र जप एकाग्र चित्त हो कर सम्पन्न करें। इस साधना में जितनी ही ज्यादा एकाग्रता
होगी, उतनो
ही ज्यादा
सफलता मिलेगा 51
माला पृरा होते होते जब यह अद्वितीय अप्सरा घुटने से धुटना सटाकर बेठ जाए, तब मत्र जप पूरा होने के बाद साधक
अप्सरा माला को स्वयं धारण कर लें, और सामने रखी हुई गुलाब की माला उसके गले में पहिना दे। ऐसा करने पर नाभिदर्शना अप्सरा भी
सामने रखी हुई दूसरी माला उठा कर साधक के गले में डाल देती है। तब साधक नाभिदर्शना अप्सरा से वचन ले
ले कि मैं जब भी अप्सरा माला से एक माला मंत्र जप करू, तब तुम्हें मेरे सामने सशरीर उपस्थित
होना है, और
मैं जो
चाहूं वह मुझे प्राप्त होना चाहिए तथा पूरे जीवन भर मेरी आज्ञा को उल्लंघन न हो। तब नाभ दर्शना अप्सरा साधक के हाथ पर
अपना हाथ रखकर बचन देती है, कि मैं जीवन भर आपकी इच्छानुसार कार्य करती रहूंगी। इस प्रकार साधना को पूर्ण समझे, और साधक अप्सरा के जाने के बाद उठ खड़ा हो। साधक को चाहिए, कि वह इस घटना को केवल अपने गुरु के
अलावा और किसी के सामने स्पष्ट न करे, क्योंकि साधना ग्रंथों में ऐसा ही
उल्लेख मुझे पढ़ने को मिला है।
मैंने
जिस मंत्र से इस साधना को सिद्ध किया है, वह मंत्र है -
।। ॐ ऐं श्रीं नाशिदर्शना
अप्सरा प्रत्यक्ष श्री ऐं फट् ।।
उपरोक्त
मंत्र गोपनीय है, साधना सिद्ध होने पर नाभिदर्शना अप्सरा महायत्र को अपने गोपनीय स्थान पर रख दें, और अप्सरा चित्र को भी अपने बाक्स में
रख दें।
गले में जो अप्सरा माला पहनी हुई है, वह भी अपने घर में गुप्त स्थान पर रख
दें, जिससे
कि कोई दूसरा उसका उपयोग न कर सके। जब साधक को भविष्य में नाभिदर्शना
अपरारा को बुलाने की इच्छा ही, तब उम महायंत्र के सामने अप्सरा माला से उपरोक्त मंत्र की एक माला मंत्र
जप कर लें।
अभ्यास
होने के बाद तो यंत्र या माला की आवश्यकता भी नहीं होती, केवल मात्र सौ बार मंत्र उच्चारण करने पर ही अप्सरा
प्रत्यक्ष प्रकट हो जाती है।