महाकाली की साधना Mahakali sadhna
माँ काली मंत्र को सिद्ध करने की सरल विधि ...
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काली
एक जाग्रत देवी है। ये सदा सक्रिय रहती हैं। इन्हीं के
कारण हमारे शरीर का बाहरी आवरण (चर्म) बनता है और हममें प्रतिरोधात्मक क्षमता होती इ्ही के कारण सभी आवेग बाहर की ओर प्रतिगमन करते हैं और इन्हीं के
कारण रक्त का निर्माण होता है। इस देवी के कारण ही
सन्तानोत्पत्ति से सम्बन्धित डिम्ब और शुक्राणु का निर्माण होता
है।
कालीजी की उत्पत्ति का मुख्य ऊर्जा बिन्दु
मूलाधार का नाभिक कामकाकिणी का बिन्दु है। यहां कालीजी
बीज रूप होती हैं। इसे समझने के लिए किसी गैस
के बर्नर से निकलती फ्लेम को देखिये।
फ्लेम की जड़ में अग्नि का स्वरूप कुछ और होता है। यहां ताप भी कम होता है। मध्य में एक बिन्दु पर तो ताप होता ही नहीं है। इसके बाद इन लपटों
में तीन वृत्त दृष्टिगत होंगे। लाल, पीला
और नीला। इसी प्रकार मूलाधार के नाभिक से जो ऊर्जा निकलती है, वह
बीच में कामकाकिणी होती है। यह नाभिक के अन्दर
का क्षेत्र है। इसके बाहर के वृत्त में काली के कई रूप
होते हैं, इसका विवरण हमने मूलाधार के चित्र में प्रारम्भ में ही दिया है।
महाकाली की सात्विक साधना विधियां
महाकाली के रौद्र रूप को देखकर भयभीत न हों,
न
ही यह समझें कि इनकी कृपा की आवश्यकता केवल
तान्त्रिकों को होती है। इनके बिना किसी भी जीव - जन्तु का जीवन बना नहीं रह सकता। इसके बिना कोई अस्तित्व, आकार और आधार की
प्राप्ति नहीं कर सकता। अत: कालीजी की
सिद्धि सबके लिए आवश्यक है । विशेषकर स्त्रियों के लिए, जिनमें
रक्ताल्पता, कमरदर्द एवं अस्थियों की दुर्बलता होती है।
सन्तान के डिम्ब बनने और सन्तान की आकृति को बनाने
में इसी शक्ति का हाथ होता है । आज स्थिति यह है कि स्त्रियों में कालीजी की शक्ति
दुर्बल होती जा रही है, इसकी अपेक्षा
कामकाकिणी और भैरवजी की शक्ति बढ़ गयी है । कालीजी की शक्ति
के दुर्बल होने पर ये शक्तियां कल्याणकारी बनी नहीं रह सकतीं । इनको संभालने की
शक्ति कालीजी में ही है। वैसे भी स्त्रियों
में भैरवजी की शक्ति का बढ़ना किसी भी स्थिति में कल्याणकारी
नहीं है। इससे कठोरता आती है और हड्डियां , नख एवं बाल कड़े
होते हैं, बन्ध्यापन आता है । स्त्रियों को
प्रति अमावस्या की रात्रि में कालीजी की साधना अवश्य करनी चाहिए। उससे पूर्व कार्तिक मास के कृष्णपक्ष में प्रतिपदा से अमावस्या तक सिद्धि
प्राप्त करनी चाहिए।
सात्विक
साधना विधि-1
किसी हवादार एकान्त कमरे में कालीजी की सवा हाथ
की मिट्टी की प्रतिमा (प्लास्टर, धातु आदि नहीं) को प्रतिपदा को स्थापित
करके सायंकाल को पूजा- अर्चना करके (धूप-दीप, गुड़हल के फूल,
सिन्दूर
और रक्तचन्दन से) मानसिक ध्यान से प्रतिमा पर ध्यान लगाकार निम्नलिखित
मन्त्र का 108 बार जाप करें। इसके बाद पूजन समाप्त करके
ध्यान लगाकर प्रतिमा को देखते हुए निम्नलिखित
मन्त्र का जाप करें-
ओऽऽऽम्
क्रं क्रां क्रीं क्रिं ह्रीं श्रीं फट् स्वाहा।
यह जाप अर्द्धरात्रि तक करें। अर्द्धरात्रि में रक्तचन्दन और सिन्दूर में चन्दन और हल्दी मिलाकर
(पुरुष बबूल का गोंद) मूलाधार के चक्र
पर लगायें और इसी का तिलक भृकुटियों के मध्य लगाकर रुद्राक्ष की माला लेकर प्रतिमा पर
ध्यान लगाते हुए उपर्युक्त बीज मन्त्र का जाप 108 बार करें।
यह पूजा 108 दिन तक रात्रि
में करें। अर्द्धरात्रि में सम्भव न हो, तो 9 बजे रात के बाद
करें। मानसिक
भाव को एकाकार करके मूर्ति में समाहित करके मन्त्र जाप करने से 108 दिन में कालीजी
मुर्ति में सजीव अनुभूत होती हैं। इस समय इनसे मनचाहा वर मांगा जा सकता है। परन्तु यह स्मरण
रखें कि कालीजी सन्तान रक्त, चर्म, कान्ति, सुन्दरता,
कामशक्ति,
कलह-झगडे में विजय,
अचल
सम्पत्ति, मुकदमे में विजय, मोहिनी शक्ति, वशीकरण शक्ति दे
सकती हैं। इनसे इन्हीं
विषयों के वर मांगने चाहिए। कालीजी से गाना गाने की क्षमता या प्रेम भाव के वर
मंगेंग. तो
वे लुप्त हो जायेंगी। ये उन भावों की देवी नहीं हैं। तन्त्र साधना में यह ध्यान
रखने की आवश्यकता
है। कोई भी शक्ति सिद्ध होने पर अपने गुणों के अनुसार ही आपको वरदान दे सकती है।
इस सिद्धि के बाद प्रति अमावस्या उपर्युक्त
मन्त्र जाप करते रहना चाहिए। यह विधि
स्त्री-पुरुष दोनों के लिए है। विशेषकर स्त्रियों के लिए । उन स्त्रियों के लिए भी,
जो
चमत्कारिक सिद्धियां चाहती हैं इससे वे जिसे चाहे, वश में कर सकती
हैं। कल्याण भी कर सकती हैं और मारण, उच्चाटन,
विद्वेषण
आदि की क्रिया भी इसी सिद्धि से कर सकती हैं। लीकिन यह
सब केवल अपनी सुरक्षा के लिए ही करना चाहिए ।
काली साधना सात्विक विधि 2
प्रतिदिन 9 बजे रात्रि के
बाद सामने सरसों के तेल की बाती जलाकर उसमें ध्यान लगाकर कालीजी के उपर्युक्त
मन्त्र का जाप 216 बार (दो माला) करें । गणना में असुविधा हो,
तो 1 घण्टे तक जाप करें। यह जाप 216
दिन तक करना चाहिए। इस समय तक कालीजी दीपक की लौ में सजीव होकर प्रकट हो जाती हैं।
इसके बाद इनसे वर मांगना चाहिए।
कालीजी
की साधना की तामसी विधि-1
कालीजी की तामसी साधना डाकिनी साधना की भांति
श्मशान में नग्न होकर करनी होती है। इसमें सारी
विधि डाकिनी साधना की ही अपनायी जाती है। पूजन सामग्री भी वही होती है। दीपक सरसों के तेल की बाती का होना चाहिए और फूल ओड़हुल का मन्त्र
उपर्युक्त सात्विक साधना का ही होगा।
काली साधना की तामसी विधि में मूलाधार पर भैंसे
का रक्त, धतूरे का बीज, मैनसिल और मदिरा-इन
सबको घोटकर सिक्के
की आकृति में मध्यमा उंगली से लेप लगाना चाहिए।
कालीजी की साधना की तामसी विधि-2
अपने घर के ईशान कोण के कमरे के ईशान कोण पर
कालीजी की प्रतिमा या तस्वीर लगायें। सर्वप्रथम श्रद्धा के साथ इनकी
पूजा-अर्चना करके इन पर मानसिक ध्यान लगाकर ऊपर दिये गये काली मन्त्र का जाप करते हुए
सम्पूर्ण एकाग्रता और श्रद्धा से उस तस्वीर या मूर्ती में कालीजी हैं, इस भाव से जाप करें। यह जाप प्रतिपदा
कार्तिक कृष्णपक्ष में अर्द्धरात्रि तक करना चाहिए, फिर
पुष्पादि अर्पण करके प्रणाम करके जप समाप्त कर देना चाहिए। यह कालीजी की प्राण-प्रतिष्ठा है। हम
यहां यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि आजकल বাन्त्रिक साधना विधि में वैदिक विधि की
प्राण- प्रतिष्ठा को मिलाकर इतनी लम्बी-चौड़ी कठिन विधि प्रक्रिया बना दी गयी है कि किसी
भी साधक का काम किसी कर्मकाण्डी पूजा- पाठी के बिना चल ही नहीं सकता। इतना सब कुछ
होने के बाद भी प्राण-प्रतिष्ठा हो ही गयी, यह कहना सरल
नहीं है; क्योंकि यह
ध्यान रखना चाहिए कि प्राण-प्रतिष्ठा का अर्थ विधि प्रक्रिया से सम्बन्धित नहीं
है। इसका केवल एक अर्थ है। वह यह है कि आपके मानसिक भाव में यह अटूट श्रद्धा और
विश्वास कायम हो जाये कि उस मूर्ति या तस्वीर में कालीजी का वास हो गया है । यह कार्य बिना किसी
विधि-विधान और प्रक्रिया को अपनाये पूजा- अर्चना करके मानसिक भाव को वहां एकाग्र
करके अटूट विश्वास और श्रद्धा के साथ मानसिक जप से भी हो सकता है। अगले दिन
कृष्णपक्ष द्वितीया की रात से 9 बजे के बाद सिन्दूर, मदिरा, चावल, रक्तचन्दन, भेड़ का अण्डकोष या वटवृक्ष की जड़, गुड़हल के फूल, सोंठ, बैंगन के बीज, कोम्हरे
( पीला कट्दू)
के बीज, बबूल की गोंद को
लेकर धूप-दीप (सरसों का तेल ) से कालीजी की पूजा करें।
यहा एक हवनकुण्ड होना चाहिए। यह कच्ची मिट्टी
पर होना चाहिए। प्लास्टर या पत्थर है, तो यह
हटाना पड़ेगा। हवनकुण्ड ईशान कोण पर कालीजी की मूर्ति के सामने होना चाहिए। कालीजी का मुख
दक्षिण की ओर रखें।
इस हवनकुण्ड में आक, खैर, बबूल, बरगद
और कोम्हरे की जड़ या आम की लकड़ी की समिधा से आग जलायें और भेड़ के अण्डकोष के छोटे टुकड़े या कीमा
बनाकर, मदिरा, चावल, अण्डकोष, बट
की जड़, सोंठ के टुकड़े
या चूर्ण, बैंगन
के बीज, कोम्हरे के बीज, बबूल की गोंद को मिलाकर 108 मन्त्रों से
कालीजी का पूर्ण एकाग्रता से ध्यान लगाकर 108 बार हवन करें।
प्रात:काल हवनकुण्ड की राख को निकालकर छानकर 1
भाग राख में 10 भाग मदिरा
मिलाकर धूप में डाल दें। सायंकाल इस मदिरा को छानकर बोतल में बन्द कर
लें। मदिरा शुद्ध और
महुए की होनी चाहिए। महुए की मदिरा न मिले, तो देशी शुद्ध मदिरा कोई भी ले लें।
प्रतिदिन प्रात:काल तीन चम्मच (बड़ा) और साधना
से पूर्व रात्रि में 9 चम्मच मदिरा स्नानादि के बाद लेकर साधना में बैठना चाहिए।
रात्रिकालीन भोजन साधना समाप्त होने पर करें।
प्रात:कालीन जलपान में दो अण्डे में पाँच बताशे
डालकर भैंस के घी में हल्की आंच दिखाकर लें।
दोपहर के भोजन में मछली का मूड़ा (सिर), उसका शोरबा और चावल या बाजरे की रटी, मक्खन और बकरे के मांस से करें।
सायंकालीन जलपान 4 बजे से 5 बजे के मध्य चावल
या चने के भूसे से करें।
यदि कब्ज होता है,
तो छोटी हरे के चूर्ण का काढ़ा पीयें। प्रतिदिन रात्रि में सोने से पूर्व गाय
का घी सिर के चांद, दोनों
कानों में एवं नाभि के मध्य डालें। अगले दिन प्रातः बेसन-दही से साफ कर लें ।
इसमें सायंकालीन समय में हल्दी, दूध (गाय का), सरसों (पीली) की लुगदी, लौ ब आटा, काली मिट्टी को घोलकर लेप लगाकर सुखाने के बाद स्नान करने का विधान
है।
यह पूजा नग्न होकर की जाती है। प्रतिदिन राख
मिलाकर जो मदिरा धून से सिद्ध की जाती है, वह
चमत्कारी/दिव्य हो जाती है। इसका विवरण अलग से दिया गया है। स्त्रियों के लिए गय साधना उसके सभी कष्टों, रोग, व्याधि, शत्रु, छिपे शत्रु आदि को दूर करने वाली है।
सिद्धि लाभ
कालीजी की सिद्धि से निम्नलिखित लाभ होते हैं-
1. तीव्र
मोहिनी एवं वशीकरण शक्तियों की प्राप्ति होती है ।
2. मनोवांछित
इच्छाओं की पूर्ति होती है।
3. इस
सिद्धि को प्राप्त करने के पश्चात् यदि कोई साधक सरसों या पानी पर साह पढ़कर किसी के
सिर, वक्ष, कण्ठ, नाभि, ललाट, मूलाधार, तलवों पर डालकर स्पर्श करके तीं बार मन्त्र पढ़ें, तो उस व्यक्ति का, चाहे स्त्री हो या पुरुष, मानसिक रोग, त्वचा का रोग, भत-प्रे बाधा, सन्तानोत्पत्ति की बाधा, किसी के किये-कराये की बाधा, नपुंसकता, कामशक्ति
की दुर्बलता, रक्ताल्पता आदि दूर हो जाती है ।
4. जो
भी इस सिद्धि को सिद्ध कर लेगा ,
उसको किसी भी अन्य तामसी शक्ति या मन्त्र की सिद्धि स्वयं हो जाती है। बस थोड़े -से
प्रयत्न से ही कोई भी मन्त्र या किसी भी सिद्धि को प्रात किया जा सकता है।
5. रक्त, चर्म, बाल, नख
और अस्थि के दोष दूर होकर वे स्वस्थ एवं शक्तिवान् स्वरूप में आ जाते हैं।
6. पुरुष
साधक की नपुंसकता दूर होती है, कामशक्ति
बढ़ती है, लिंग
दोष दूर होते हैं।
7. स्त्रियों
के लिए काली की साधना अत्यन्त लाभकारी है। जो मांसाहारी हैं, उनके लिए तामसी विधि-2 अधिक उपयोगी है। इससे उनकी अस्थियों
का दर्द, कमरदर्द, रक्ताल्पता, चमदाष (रुखापन, रोम
आदि) दूर होते हैं। उसके अन्दर डिम्ब बनने की प्रक्रिया सुधरती है, जिसमे बन्ध्यापन दूर होता है। योनिविकार दूर
होते हैं। गर्भाशय की नली का दोष दूर होता है। . स्त्रियों के
मासिक सम्बन्धी किसी भी प्रकार के दोष दूर हो जाते हैं। सबसे बड़ा
लाभ उसमें सम्मोहन शक्ति को तीव्र रूप का उत्पन्न हो जाना है । इससे
उसके सौन्दर्य और व्यक्तित्व की कान्ति उसकी दृष्टि में ऐसी शक्ति उत्पन्न हो जाती है कि शत्रु भाव रखने
वाली स्त्री या पुरुष उससे नजर नहीं मिलाते और सहमते हैं। वह जिस स्त्री या पुरुष
को प्रेम से देखे, वह
उसके वश में हो जाते जाती
है। हैं
और पालतू जानवर-सा प्रत्येक आज्ञा का पालन करते हैं।
8. काली
की साधना से रक्ताल्पता दूर होती है और इससे मस्तिष्क स्वस्थ होता है, मानसिक तनाव दूर होता है, प्रफ्फुलता और उल्लास उत्पन्न होता है।
चेतावनी
काली की किसी भी सिद्धि विधि को अपनाने पर
कामभाव और क्रोध भाव बढ़ता है। इस पर नियन्त्रण रखने की आवश्यकता है। क्रोध और क्षुब्धता आये, तो श्रीकृष्ण के मोहिनी स्वरूप को ध्यान में
लायें। कामभाव उग्र हो, तो
कोढ़ी या घृणित वस्तु का तुरन्त ध्यान में लायें । हिंसा का भाव उत्पन्न हो, तो समाधि में शिव का ध्यान लायें।
काली के विभिन्न रूपों की सिद्धियां
महाकाली या काली सिद्धि के बाद ही काली के
विभिन्न रूपों की साधना-सिद्धि की जाती है। सीधे किसी अन्य रूप की साधना करना कठिन भी है और खतरनाक भी।
साधना विधि
स्थान
1. जलकाली
ईशान में ईशानोन्मुख आसन
2. अग्निकाली
आग्नेय में आग्नेयमुखी आसन
3. वायुकाली
वायव्य में वायव्योन्मुखी आसन.
4. रुद्रकाली
नैऋत्य में नैऋत्योमुखी आसन
5. दक्षिण
काली दक्षिणोन्मुखी आसन दक्षिण में
6. उत्तरकाली
उत्तरोन्मुखी आसन उत्तर में
आसन
1 = सिन्दूरी ,2 = अग्नि के रंग का ,3
= सिन्दूरी, 6 - सिन्दूरी, 4
= रक्तिम लाल, 5 = लाल
ध्यान
सिन्दूर से धरती पर भैरवी चक्र बनाकर
चित्रानुसार उस स्थान पर, जहां
जिस काली का
नाम है, सरसों के तेल का दीपक जलाकर रखे और उसमें कालीजो का ध्यान लगाकर
मन्त्र जाप
करें।
ओऽऽऽऽऽम् क्रं क्रां क्रीं क्रिं
ह्रीं श्रीं क्ली.......फट् स्वाहा
नोट-खाली स्थान पर इष्टकाली का नाम बोलें।
समय
जलकाली, उत्तरकाली- 9 से 12
दक्षिणकाली, रुद्रकाली- 12 से 3
अग्निकाली, वायुकाली
- ब्रह्मुहूर्त
शेष सभी विधियां महाकाला साधना या काली साधना
के समान।