Diwali
बड़ी-दीवाली 'दीपावली'
कार्तिक
मास की अमावस्या के दिन दीपावली (दिवाली) मनाई जाती है। इस दिन भगवती महालक्ष्मी क़ा उत्सव बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। भारत वर्ष महान देश होने के कारण चारों बड़े-बड़े त्यौहारों को सभी हिन्दू मनाते हैं। चाहे वे कोई भी वर्ण के क्यों न हों । इस दिन लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने के लिए पहले घर को लीप पोतकर साफ सुथरा कर लिया जाता है। घरों को अच्छी तरह से सजाकर घी के दीपों की रोशनी की जाती है । बच्चे उमंग मैं भरकर आतिशबाज़ी (सुर्री, पटाखे) छोड़ते हैं।
Diwali पूजन विधि
–
लक्ष्मी
पूजन के लिए पहले सफेदी से दीवाल पोतलें। फिर गेरूआ रंग में दीवाल पर ही बहुत सुन्दर
गणेशजी
और लक्ष्मीजी की मूर्ति बनावें । इसके अलावा जिन देवी देवताओं को
और मानते हों, उनकी पूजा करने को उनके मन्दिरों को जावें । साथ में जल, रोली, चावल,
खील, बताशे, अबीर, गुलाल, फूल, नारियल, मिठाई, दक्षिणा, धूप, दियासलाई आदि सामिग्री
ले जावें और पूजा करें। फिर मंदिरों से वापिस आने के बाद अपने घर के ठाकुरजी की पूजा
करें। गणेश लक्ष्मी की मिट्टी की प्रतिमा बाजार से लावें । अपने
व्यापार के स्थान गद्दी पर बहीखातों की पूजा करें और हवन करावें,
(गद्दी) की पूजा और हवन आदि के लिए पंडित जी से पुंछ कर सामग्री इकट्ठी कर लेवें, घर
में जो सुन्दर-सुन्दर भोजन मिठाई आदि बनी हों उनमें से थोड़ा-2 देवी देवताओं के नाम
का निकालकर ब्राह्मण को दे देवें, इसके अलावा बाह्मण को भी भोजन करा देवें। इस दिन
धन के देवता धनपति कुवैर जी विघ्न विनाशक गणेश जी, राज्य सुख के दाता इन्द्रदेव, समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले विष्णु भगवान तथा
बुद्धि की दाता सरस्वती जी की भी लक्ष्मी जी के साथ पूजा कर। दिवाली के दिन दीपकों की पूजा का बहुत
महत्व है । इसके लिए दो थालों में दीपक रखें, छः चौमुखा दीपक दोनों थालों में सजायें
। छब्बीस छोटे दीपकों में तेल बत्ती रखकर जला लेवे । फिर जल, रोली, खील, बताशे, चावल,
फुल, गुड़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से उनको पूजें। फिर गद्दी (व्यापार का स्थान) की गणेश
लक्ष्मी की प्रतिमा रखकर पूजा करें । इसके बाद घर में आकर पूजा करने के बाद दीपकों
को घर में स्थान -2 पर रख देवें । एक चौमुखा और छ, छोटे दीपक गणेश लक्ष्मी के पास ही
रख देवें स्त्रियां लक्ष्मी जी का व्रत करे। इसके बाद जितनी श्रद्धा हो उनने रुपये
बहुओं को देवें। धर के सभी छोटे माता-पिता। सभी बड़ों के पैर छुएं और आशीर्वाद लेवें
।
जहां दीवाल पर गणेश लक्ष्मी बनाये हों वहां उनके आगे 1 पट्टे पर
एक चौमुखा दीपक और छ छोटे दीपक में घी बत्ती डालकर रख देवें तथा रात्रि के बारह बजे
पूजा करें। दूसरे पटटे फिर पर एक लाल कपड़ा बिछावे उस पर चांदी या मिट्टी के गणेश.
लक्ष्मी रखें, उनके आगे 101 रुपये रखें, एक बर्तन में 1 । सेर, चावल, गुड़, 4 केला,
दक्षिणा, मूली, हरी गवारफली, 4 सुहाली, मिठाई, आदि गणेश लक्ष्मी के पास रखें। फिर गणेश
लक्ष्मी, दीपक, रुपये आदि सबकी पूजा करें। एक तेल के दीपक पर काजल पाड़ लें। फिर उसे
सभी स्त्री पुरुष अपनी आंखों में लगावें।
दिवाली पूजन की रात को जब सब सोकर सुबह उठते हैं. उससे पसले स्त्रियां
घर के बाहर सूप बजाकर गाती फिरती हैं। इस सूप पीटने का मतलब यह होता है कि जब घर में
लक्ष्मी का वास हो गया
तो दरिद्र को घर से निकाल देना चाहिए । उसे निकालने के लिए ही सूप
बजाती फिरती हैं । साथ ही दरिद्र से कहती जाती हैं-
दोहा- काने भेंड़
दरिद्र तू, घर से जा अब भाज।
तेरा यहां
कुछ काम नहीं, बास लक्ष्मी आज ।
नहिं आगे
डंडा पड़े, और पड़ेगी मार।
लक्ष्मी जी
बसती जहां, गले न तेरी दार ।
फिर तू आवे
जो यहां, होवे तेरी हार।
इज्जत तेरी
नहिं करें, झाडू से दें मार।
फिर घर में आकर स्त्रियां कहती हैं कि इस घर से दरिद्र चला गया है।
हे लक्ष्मी जी ! आप निर्भय होकर यहां निवास करिये।
Diwali दिवाली मनाने
के संबंध में कथायें
1. कहा जाता
है इस दिन भगवान ने राजा बलि को पाताल लोक का इन्द्र बनाया। तब इन्द्र ने बड़ी प्रसन्नता
पूर्वक दिवाली मनाई' कि मेरा स्वर्ग का सिंहासन बच गया।
2. इसी दिन समुद्र
मंथन के समय क्षीर सागर से लक्ष्मी प्रकट हुई थी और भगवान को अपना पति स्वीकार किया।
3. जब श्री रामचन्द्र
जी लंका से वापिस आये तो इसी अमावस्या को उनका राजतिलक किया गया था।
4.इसी दिन राजा विक्रमादित्य
ने अपने संवत् की रचना की थी। बड़े-बड़े विद्वानों को बुलाकर मुहूर्त निकलवाया था कि
। नया सवत् चैत्र सुदी प्रतिपदा ले चलाया जाये ।
5. इसी दिन आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द का निर्वाण हुआ
था।