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Tuesday, 10 December 2019

'तन्त्र'क्या है WHAT IS 'TANTRA'

'तन्त्र'क्या है
 WHAT IS 'TANTRA'
What is Tantra? Is it highly misunderstood cult and practice?, In Hinduism, what is tantra?


What is Tantra? Is it highly misunderstood cult and practice?, In Hinduism, what is tantra?









आजकल 'तन्त्र' शब्द बेहद बदनाम हो चुका है। तन्त्र' कहते ही सामान्यतया जनमानस । 'तन्त्र' के उस स्वरूप की कल्पना कर बैठता है, जिसके कारण नरबलयों का सिलसिला प्रारम्भ हो चुका है या जिसमें निष्कृष्ट पदार्थों के सेवन एवं निष्कृष्ट आचरण का प्रयोग होता है। यहां हम  स्पष्ट करना चाहेंगे कि व्यवहार में आज जिस प्रकार तन्त्र' के नाम पर अनाचार और वीभत्स कृत्य किये जा रहे हैं, उनका 'तन्त्र' से कुछ लेना-देना नहीं है। तन्त्र' की किसी भी साखा में नरबलि का वर्णन कहीं उपलब्ध नहीं है और न ही इसकी सिद्धियों के लिए निष्कृष्ट पदार्थों का सेवन और निष्कृष्ट आचरण करने का निर्देश कहीं प्राप्त होता है। यह सब समाज के निम्नस्तरीय स्तर पर व्याप्त छटे हुए अपराधियों द्वारा किया जा रहा है, अत: तन्त्र- विद्या को इससे जोड़कार देखना एक भारी भ्रम है।

'तन्त्र' का रहस्य

शास्त्रों में 'तन्त्र' शब्द की अनेक व्याख्याएं उपलब्ध हैं। इन व्याख्याओं में भी 'तन्त्र' के स्वरूप पर ही प्रकाश डाला गया है। इससे यह ज्ञात नहीं होता कि 'तन्त्र' वास्तव में क्या है और किसके बारे में है। इस पुस्तक को लिखने का मेरा उद्देश्य शास्त्रीय ज्ञान की विद्वता को प्रदर्शित करना नहीं है। मैं समाज के जिज्ञासुओं, तन्त्र के आलोचकों एवं इसकी साधना के लिए उत्सुक व्यक्तियों को वास्तविक ज्ञान कराने के उद्देश्य से यह पुस्तक लिख रहा हूं, अत: इन शास्त्राय व्याख्याओं में उलझकर द्विगभ्रमित होना उचित नहीं होगा। मैं सीधे शब्दों में बताना चाहता हूँ।कि 'तुन्त्र' का क्या अर्थ है और यह किसके बारे में है। वस्ततः ' तन्त्र' का अर्थ 'व्यवस्था' से है। इसका वास्तविक अर्थ यही है। प्रश्न यह उठता है। कि यह किसकी व्यवस्था से सम्बन्धित है ?

वास्तव में, आध्यात्मिक अर्थ में यह 'परमात्मा' की व्यवस्था के अर्थ में है और वैज्ञानिक अर्थ में यह ब्रह्माण्ड की ऊर्जा-व्यवस्था या उसकी ऊर्जा-धाराओं की व्यवस्था के सन्दर्भ में है। आज हम 'तन्त्र' को जिस स्वरूप में जानते हैं, वह इसकी सिद्धियों के प्रयोग से सम्बन्धित स्वरूप है। वैज्ञानिक रूप में समझें, तो आज 'तन्त्र' के प्रायोगिक स्वरूप को ही 'तन्त्र' समझा जाता है, परन्तु यह प्रायोगिक स्वरूप अलग-अलग सिद्धान्तों या सत्य पर आधारित नहीं है।

'तन्त्र'का वास्तविक स्वरूप इसके सैद्धान्तिक वर्णन में है। प्रयोग की सभी सिद्धियां इस सैद्धान्तिक शास्त्र के सिद्धान्तों पर आधारित हैं।

उदाहरण से समझें, मान लें कि हम भैरवजी की शक्तियों की सिद्धि में से किसी एक की सिद्धि का प्रयोग करते हैं, तो हमें केवल उस सिद्धि के उस प्रयोग का ज्ञान होता है। सैकड़ों वर्ष से तान्त्रिक गुरु 'तन्त्र' के केवल इसी स्वरूप की परम्परा को ढोये जा रहे हैं। यह ठीक इसी प्रकार है, जैसे एक मेकेनिक किसी विशिष्ट क्षेत्र की प्रेक्टिस कर लेता है। उसे कैसे, क्यों से मतलब नहीं होता। वस्तुत: इसमें कोई ज्ञान है ही नहीं। आप केवल यह जान जाते हैं कि यदि आप ऐसा करें, तो इसका फल यह प्राप्त होगा। यह एक अन्धी दौड़ है। आपको ऐसी.दौड़ में प्रत्येक कदम पर गुरु को आवश्यकता होगी और सफलता प्राप्त करके भी भले ही शक्ति की कोई एक सिद्धि आपको प्राप्त हो जाये, 'तन्त्र' के सवरूप का ज्ञान नहीं हो सकता।

सृष्टि की उत्पत्ति से अन्त तक

'तन्त्र' वास्तव में वह शास्त्र है, जो हमें यह बताता है कि सृष्टि की उत्पत्ति किससे, क्यों और किस प्रकार हुई। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति के प्रथम चरण से लेकर ब्रह्माण्ड के विकास तक की प्रक्रिया समझायी जाती है। यह वह शास्त्र है, जो हमें बताता है कि जिसे हम ऊर्जा कहते हैं, वह क्या है और किस प्रकार निर्मित एवं विकसित होती है। वह हमें बताता है कि सर्वप्रथम कैसे एक नन्हा-सा तीन ऊर्जा-बिन्दुओं से युक्त परमाणु उत्पन्न होता है और किस प्रकार यह वामनावतार" विशालकाय ब्रह्माण्ड के रूप में परिणत हो जाता है।

यह केवल इतना ही नहीं बताता, यह हमें बताता है कि बिन्दु रूप उत्पन्न होने वाले इस ब्रह्माण्ड
की ऊर्जा-व्यवस्था क्या है और वह किस प्रकार विकसित होती है। किस प्रकार इसका वर्गीयकरण एवं इसकी परिचालन प्रक्रिया है। इस ऊर्जाधारा का मूल स्रोत क्या है। 'तन्त्र' का सैद्धांतिक स्वरूप एक विशाल ऊर्जा-शास्त्र है; जिसमें उस प्राकृतिक ऊर्जा-व्यवस्था के बारे में समग्र रूप से सूक्ष्म-से-सूक्ष्म स्तर पर बताया गया है, जिससे यह ब्रह्माण्ड एवं इसकी समस्त छोटी-बड़ी अनन्त इकाइयां सक्रिय है।
'तन्त्र' की सिद्धियों का शास्त्र इस सैद्धान्तिक ज्ञान पर ही आधारित है। जो इसके सैद्धान्तिक स्वरुप का ज्ञान रखता है, वह चाहे, तो सिद्धियों के लिए नये प्रायोगिक मार्ग तलाश सकता है।

नई सिद्धियों की भी खोज कर सकता है। जिन्हें तन्त्र के सैद्धान्तिक स्वरूप का ज्ञान नहीं है, वे केवल उन्हीं प्रयोगों या सिद्धियों तक सीमित रहते हैं, जिनका ज्ञान उन्हें गुरु द्वारा प्राप्त होता है। न तो उन्हें तन्त्र-विज्ञान' के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान होता है, न ही वे इसके उद्देश्य के सम्बन्ध में कुछ जान पाते हैं।

वास्तविकता तो यह है कि तन्त्र- शास्त्र भारतीय परमाणु एवं ऊर्जा-विज्ञान का एक विशाल शास्त्र है। यह इस देश का दुर्भाग्य है कि आधुनिक विज्ञान के प्रति अन्धआस्था के शिकार वैज्ञानिकों ने अपने प्राचीन ज्ञान विज्ञान पर ध्यान ही नहीं दिया और जो धार्मिक अन्धआस्था के शिकार हैं, वे इसकी सिद्धियों के स्वरूप में ही उलझे रह गये ।