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Thursday 5 December 2019

MIND RELAX ,दिमागी शांति के सरल प्रयोग

MIND RELAX 
दिमागी शांति के सरल प्रयोग
विजया तंत्र

इसे सामान्य बोलचाल की भाषा में भांग या भंगेड़ा के नाम से जाना जाता है। नदियों के किनारे व नदी के पास स्थित जंगलों में यह बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। इस पौधे का मुख्य प्रयोग तो मानसिक शांति व शारीरिक सौन्दर्य के लिए होता है, परन्तु यह अधिकांशतः नशे के लिए प्रयोग में लाया जाता रहा है। भांग (विजया) के कुछ कल्याणकारी प्रयोग निम्न प्रकार हैं।
चैत मास में प्रतिदिन प्रातःकाल सौंफ, बादाम, मुनक्का, काली मिर्च, इलायची, गुलाब, केसर, दूध और शक्कर में थोड़ी-सी विजया मिलाकर एक गिलास की मात्रा में पीया जाए तो यह मस्तिष्क की नाड़ी संस्थान को स्वस्थ व सबल बनाती है, किन्तु इसका प्रयोग मादकता के लिए नहीं करना चाहिए। केवल एक माशा (आठ रत्ती) भांग का प्रयोग लाभकारी होता है। इससे धारणा, चिन्तन, कल्पना तथा स्मरणशक्ति की वृद्धि होती है। यह प्रयोग बुद्धिजीवी कार्य करने वालों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है।
उपरोक्त विधि से कोई व्यक्ति यदि पूरे वैशाख मास तक विजया सेवन करे तो उसका रक्त और स्नायु संस्थान विष के दुष्प्रभाव से मुक्त रहता है। खाने-पीने वाली वस्तुओं की विषाक्तता इस प्रयोग से नष्ट हो जाती है।
ज्येष्ठ मास में उपरोक्त विधि से बनाया गया विजया शर्बत शारीरिक सौन्दर्य की वृद्धि करता है। इसका सेवन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व ही करना चाहिए।
आषाढ़ मास में विजया का सेवन बालों के स्वास्थ्य में निखार लाता है। इस प्रयोग में विजया को पेय के रूप में न लेकर चित्रक के चूर्ण के साथ प्रयोग करना चाहिए।
रुद्रदन्ती और भांग को पीसकर गोली बनाएं। शर्बत बनाकर पीने से यह मस्तिष्क की ताजगी व शरीर को पुष्ट रखने में सहायक होता है तथा अपार संभोग शक्ति का विकास करता है। इसका सेवन सेक्स आनन्द में वृद्धिकर वाजीकरण का काम करता है।
विजया की पत्ती, ज्योविष्मती (मालकांगनी) के साथ पीसकर कुआर (क्वार) मास में पीने से शरीर निरोग, कांतियुक्त तथा बलिष्ठ हो जाता है।
क्वार माह वाला प्रयोग ही बकरी के ताजे दूध के साथ कार्तिक मास में समस्त घटकों, मेवे आदि के साथ लेने से शरीर का बल व चेहरे की कान्ति बढ़ती है।
अगहन मास में विजया चूर्ण, घी, शक्कर के साथ सेवन करने से नेत्र ज्योति की रक्षा करता है।
पौष मास में काले तिल और विजया का सेवन किया जाए तो यह दृष्टिशक्ति में अपार वृद्धि करता है।
माघ मास में नागरमोथा की जड़ के साथ विजया चूर्ण मिलाकर सेवन करना चाहिए। इस प्रयोग से शरीर के बल तथा कान्ति की वद्धि होती है।
फाल्गुन मास में विजया का चूर्ण अथवा रस के साथ आंवले को पीसकर सेवन करने से शरीर का सम्पूर्ण नाड़ी जाल (स्नायु तंत्र) सतेज हो जाता है। वात और रक्त के समस्त अवरोध दूर हो जाते हैं। शरीर की सक्रियता और गतिशीलता बढ़ाने में यह प्रयोग बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है।
बारह महीनों तक विभिन्न अनुपानों के साथ विजया का सेवन 'विजय कल्प' कहलाता है। यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति विभिन्न अनुपानों के साथ पूरे वर्ष विजया का ही सेवन करे तो वह समस्त शारीरिक दोषों से दूर होकर पूर्ण शारीरिक शक्ति, सौन्दर्य तथा अपार पौरुष शक्ति वाला स्वस्थ व्यक्ति बन जाता है। नाड़ी संस्थान, स्नायु तंत्र की सक्रियता से समस्त रक्त विकारों की शुद्धि होती रहती है, जिससे किसी प्रकार का कोई रोग साधक पर नहीं हो पाता। यह निश्चित ही साधकों के प्रयोग के योग्य है जिससे उनकी कल्पनाशक्ति व विचारशक्ति में अपार वृद्धि हो, साधना का विकास होता है।