अगिया बैताल की साधना
AGIYA BETAAL SADHNA
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अगिया बैताल भी सिद्ध परम्परा द्वारा अन्वेषित
शक्ति है। वस्तुत: यह एक उग्र मानसिक शक्ति और काली
की संहारक शक्ति का एक संयोग है। वामतन्त्र के अनुसार इसे रुद्रकाली कहा जा सकता है।
इस भाव की सिद्धि होने पर आक्रामक भाव की शक्ति
अत्यन्त प्रबल हो जाती है। अगिया बैताल सभी
प्रकार के मनोरथ पूर्ण करता है। साधक के लिए साधना के समय वह प्रहरी का काम करता है और किसी भी अन्य आसुरी शक्तियों के
विघ्न को या किसी दुष्ट साधक द्वारा प्रतिस्पर्धा में किये गाये तान्त्रिक
अभिचार की शक्तियों को नष्ट कर देता है। अगिया बैताल दूसरों को दिखाई नहीं पड़ता, पर साधक उसकी प्रत्यक्ष अनुभूति करता
है और यह अनुभूत करता है कि वह उसकी आज्ञा पर क्रिया
कर रहा है। हम पहले ही कह आये हैं, ऐसा प्रकटीकरण साधक की स्वयं की अनुभूति होती है। यह मायावी अनुभूति है।
स्थान- श्मशान
या निर्जन।
दिशा- दक्षिण
की ओर मुख करके।
सामग्री- गुड़,
गुड़
की खीर, बताशा, पान, सुपारी , सिन्दूर,
तांबे
का दीपक, सरसों का तेल, पीली
सरसों, राई, कुमकुम, कपूर, बिम्बफल,
बन्दर
के बाल या चर्बी, मदिरा, बकरे का मास,
चावल,
तिल
आदि।
मन्त्र-
ओऽऽऽऽऽम् रुद्ररुप कालिका
तनय भ्रौं भ्रौं क्रीं क्रीं फट् स्वाहा।
साधना विधि-
यह साधना श्मशान में अर्द्धरात्रि
के समय की जाती है। श्मशान में चिता की भस्म का घेरा
बनाकर उस पर सिन्दूर पूरित करते हुए एक बड़ा घेरा बनायें। इस घेरे में ही साधना की जाती है। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके आसन लगायें और सामने
शिवलिंग बनाकर उसके शीर्ष पर तांबे के दीपक को
सरसों के तेल में जलाकर पान-सुपारी, कुमकुम आदि
से रुद्र की पूजा करें, फिर खैर की लकड़ी जलाकर, सभी पदार्थों को
मिलाकर आहुति देते हुए 108 मन्त्र का पाठ
करें। इसके बाद मन्त्र जाप करते हुए अगिया
बैताल पर ध्यान केन्द्रित करके उसका आह्वान करें।
यह जाप 1188 मन्त्रों से प्रारम्भ करें और प्रतिदिन 108
मन्त्र का जाप करते हुए 108 दिन तक
करें। अगिया बैताल के प्रकट होने पर उसे मास, मंदिरा, बताशा,
गुड़,
पान
आदि दें। उससे तीन वचन लें और मदिरा-मांस आदि वहीं
छोड़कर रुद्र को प्रणाम करें।
सावधानियां
1. पूर्ववत् ।
2. इस साधना में प्रकृति में हलचल मच जाती है। इस
कारण वातावरण भयानक हो जाता है। इससे घबराकर
श्मशान की प्रेतात्मायें साधक को डराती हैं। साधक को इससे भयभीत नहीं होना चाहिए। साधना के समय अग्नि के झमाके भी पैदा होकर साधक की ओर
झपट सकते हैं। साधक को इसकी परवाह न करके अपना काम
करते रहना चाहिए।
3. अगिया बैताल अदृश्य होकर सदा साधक की सहायता
करता है, पर वह शिव, सरस्वती, गणेश आदि
सात्विक देवों के मन्दिर में साधक के साथ होता है।
4. अगिया बैताल में मधुरता का भाव नही है, इसलिए
इसका प्रयोग कामक्रीड़ा आदि के साधन जुटाने में
न करें। करेंगे, तो वह स्त्री, जिसके साथ
क्रीड़ा करेंगे, आपसे बुरी तरह भयभीत हो
जायेगी और भयभीत नारी से कामक्रीड़ा करना तन्त्रशास्त्र में लाश के साथ क्रीड़ा
करने के समान है।
5. अगिया बैताल का प्रयोग समझ-बूझकर करें। उच्च
तन्त्र साधक या योगी को आप इसके द्वारा
नियन्त्रण में नहीं ले सकते। हां , यदि वह दुश्मनी से वार कर रहा है,
तो
वहां अगिचा बैताल उसकी शक्ति से लड़ने में सूक्ष्म
है।
6. गुप्त रहस्य बताने, गड़े हुए धन का
पता बताने, किसी क्षेत्र विशेष की रक्षा करने में अगिया बैताल का प्रयोग किया जाता है।
7. दुर्गा के साधक पर इस शक्ति का प्रभाव तब तक
नहीं होगा, जब तक वह अन्यायपूर्ण तरीके
से किसी पर आक्रामक नहीं होता।
8. अगिया बैताल सिद्ध करने के अन्य तरीके भी हैं।
कई साधना विधियां भी प्रचलित हैं। प्रस्तुत विधि गुरु मच्छन्दर नाथ द्वारा वर्णित है।
9. भावुक एव कोमल हृदय या दुर्बल आत्मबल वाले
व्यक्ति को अगिया बैताल की साधना नहीं करनी
चाहिए । सिद्धि तो मिलेगी नहीं, हानि भी हो सकती है। यही स्थिति कामुक व्यक्तियों के लिए है। इस साधना में कामभाव पर नियन्त्रण रखा जाता है।
10. कुश की झाड़ से दुर्गा मन्त्र द्वारा
अभिमन्त्रित जल फेंकने पर अगिया बैताल गायब ही जाता
है।
11. रुद्र के उच्च साधक के सामने बैताल की शक्ति
साधकों की परस्पर शक्ति अनुपात में होती
है।