क्या आप नवग्रह दोष सें
परेशान है ?
तो जल्दी करें ये अनुष्ठान..
नवग्रह शान्ति के सात्विक अनुष्ठान
ग्रहों की शान्ति के लिए शास्त्रीय अनुष्ठान विधि अनेक विधि-विधानों के पालन के साथ सम्पन्न की जाती है। ये अनुष्ठान दो प्रकार से किये जाते हैं-एक सात्विक, दूसरा तामसी । सात्विक प्रकृति के व्यक्ति हैं, उन्हें तामसी अनुष्ठान लाभ नहीं देता एवं जो तामसिक हैं, उन्हें सात्विक अनुष्ठान फल नहीं देते। अतः इन अनुष्ठानों का चयन करते समय प्रकृत्ति का ध्यान रखें।
नवग्रह शान्ति अनुष्ठान
नौ ग्रहों की सामूहिक शान्ति के लिए प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में पवित्र होकर भगावामा का ध्यान लगाकर पूर्व की ओर मुख करके बैठे और धूप-दीप एवं फूल से विष्णु की आग करके प्रतिदिन इक्कीस बार नवग्रह स्त्रोतम् का पाठ करें।
नवग्रह स्त्रोतम्
जया-कुसुम-सङ्काशं काश्यपेयं महाधुतिम्।
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरम्॥1॥
दधि-शङ्ख-तुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम्।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम्॥2॥
धरणीगर्भसम्भूतं विधुक्तान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मगलं प्रणमाम्यहम्॥3॥
पियङ् गुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्॥4॥
देवानां च ऋषिणां च गुरु कांचनसन्निभम्।
बुद्धिभूत त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्॥5॥
हिमकुन्द मृणालाभं देव्यानां परमं गुरुम्।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम्॥6॥
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥7॥
अर्धंकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम्।
सिंहिकामर्भयाभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥8॥
पलाश-पुष्प-सङ्काशं तारकाग्रहमस्तकम्।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥१॥
इति व्यासमुखोद्गीतं यः पठेत् सुसमाहितः।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्नशान्तिर्भविष्यति॥10॥
1.सूर्य ग्रह शान्ति अनुष्ठान
किसी शुक्लपक्ष के रविवार को जब पुष्य नक्षत्र पड़ता हो, एक तांबे की प्लेट पर यहां या सूर्य यन्त्र को लिखें। इसके लिए कांसे की कलम प्रयुक्त करें। खुदे हुए स्थान पर
गोरोचन से अभिलेख करें।
प्लेट को अपने सामने रखकर उदित होते सूर्य की ओर मुख करके बैठे। भगवान् विष्णु का
मन्त्र पढ़कर स्थान को जल से अभिमन्त्रित करें। प्लेट को यन्त्र खोदने से पहले गाय या उसके दूध एवं गोमूत्र से बारी-बारी धोकर गंगाजल से धो लेना चाहिए। प्लेट के सामने सुद्ध घी का दीपक जलाकर रखें एवं भगवान् सूर्य का निम्नलिखित सूर्य कवच पाठ करें। यह पाठ 43 रविवार तक प्रतिदिन 21 कवच पढ़ते हुए करें। अनुष्ठान की समाप्ति पर भगवान् सूर्य का विधिवत् पूजा करें। सूर्य कवच के स्थान पर वैदिक बीजमन्त्र या सूर्य-मंगल स्तोत्रम् का भी
पाठ किया जा सकता है।
सूर्य यन्त्र
सूर्य कवचम्
ऋणुष्व मुनिशांदूल सूर्यस्य कवचं शुभम्।
शरीरारोग्यदं दिव्यं सर्वसौभाग्यदायकम्॥1॥
देदीप्यमानमुकुट स्फुरन्मुकरकुण्डलम्।
ध्यात्वा सहस्त्रकिरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत्॥2॥
शिरो में भास्करः पातु ललाटं मेऽमितधुतिः।
नेत्रे दिनमणिः पातु श्रवणे वासरेश्वरः॥3॥
घ्राणं धर्मघृणिः पातु वदनं वेदवाहनः।
जिह्वां में मानदः पातु कण्ठं में सुश्वन्दितः॥4॥
स्कन्धौ प्रभाकरः पातु वक्षः पातु जनप्रियः।
पातु पादौ द्वादशात्मा सर्वांङ्ग सकलेश्वर॥5॥
सूर्यरक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्जपत्र के।
दधाति यः करे तस्य वरागाः सर्वसिद्धय॥6॥
सुस्नाती यो जपेत् सम्यग् थोडधीते स्वस्थमानसः।
स रोगमुक्तो दीर्घायुः सुखं पुष्टिं च विन्दति ॥7॥
2.चन्द्र ग्रह शान्ति अनुष्ठान
स्फटिक अथवा चांदी की प्लेट को गाय के गोबर, गाय के कच्चे दूध एवं गोमूत्र से धोका गंगाजल से साफ करें। प्लेट पर चन्द्रमा की आकृति में यहां दिये गये चन्द्र यन्त्र को खुदवाए I
किसी शुभ सोमवार को खुले आसमान के नीचे शुक्लपक्ष में चन्द्रमा की ओर मुख कर बैठे। सफेद मदार की जड़ रविवार को ही खोदकर निकाल लें और गाय के उसकी शुद्धि कर लें। इस जड़ को प्लेट पर रखें और गाय के घी का दीपक जलाकर समाधिष्ठ
शिव की पूजा-आराधना करें। इस पूजा के बाद 21 दिन तक 21 कवच प्रतिदिन के हिसाब से चन्द्र कवचम् का पाठ करें। इसके स्थान पर वैदिक बीजमन्त्र या चन्द्र-मंगल स्तोत्रम् का भी पास किया जा सकता है। चन्द्रमा की प्लेट को अनुष्ठान पूर्ण होने पर पूजा घर में रखें और प्रतिदिन धूप-दीप दिखायें एवं 8 बार चन्द्र मन्त्र का पाठ करें। आक की जड़ को सफेद सूती धागे से गले में पहनें। आक की जड़ के स्थान पर चन्द्रमा से सम्बन्धित रत्न भी सिद्ध किया जा सकता है।
चन्द्र यन्त्र
चन्द्र कवचम्
समं चतुर्भुजं वन्दे केयूरमुकुटहोज्ज्वलम्।
वासुदेवस्य नयनं शंकस्य च भूषणम्॥1॥
एवं ध्यात्वा जपेन्नित्वं शशिनः कवचं शुभम।
शशी पातु शिरोदेशं भालं पातु कलानिधि॥2॥
चक्षुषी चन्द्रमाः पातु श्रुती पातु निशापतिः।
प्राणं क्षणाकरः पातु मुखं कुमुदबान्धवः॥3॥
पातु कण्ठं च में सोमः स्कन्धे पैवातृकस्तथा।
करौ सुधाकरः पातु वक्षः पातु निशाकरः॥4॥
हृदयं पातु में चन्द्रों नाभि शंकरभूषणः।
मध्यं पातु सुरश्रेष्ठः कटिं पातु सुधाकरः॥5॥
अरु तारापतिः पातु भृगांको जानुनी सदा।
अब्धिजः पातु में जो पातु पादौ विधुः सदा॥6॥
सर्वाण्यन्यानि चाङ्गानि पातु चन्द्रोऽखिलं वपुः।
एताद्धि कवचं दिव्यं भुक्तिमुक्ति-प्रदायकम्।।7।।
यः पठेच्छृणुयाद् वाडपि सर्वत्र विजयी भवेत्॥
3.मंगल ग्रह शान्ति अनुष्ठान
भोजपत्र या तांबे के पत्र को गौपंचामृत से शुद्ध करके आगे दिया गया यन्त्र रक्त चन्दन से लिखें।
U मंगलवार के दिन उपवास रखकर चार या आठ रत्ती
का मूंगा या आनन्तमूल की जड़ भी गौपंचामृत से सुद्ध करके अपने पास रख लें। प्रात:काल उदित होते सूर्य की
ओर मुख करके 21 बार मंगल कवच मन्त्र का पाठ करें। सन्ध्या में हनुमानजी की पूजा कर बेसन
क़े लड्डू चढ़ायें।
उपवास न कर सकें, तो मंगल के दिन केवल नमक छोड़ दें। प्रतिदिन जाप कें
बाद 9 बार मन्त्र पढ़कर, खैर की लकड़ी से रक्त चंदन, सिन्दूर,लाल फूल, लाल फल, मधु, घी आदि का हवन
करना चाहिए
मंगल यन्त्र
मंगल कवचम्
रक्ताम्बरो रक्तवपुः किरीटी चतुर्भुजो मेषगमो गदाभृत।
घरासुतः शक्तिधरश्च सदा मम स्याद् वरदः प्रशांत॥1॥
अंगारकः शिरो रक्षेत् मुखं वै धरणोसुतः।
श्रबो रक्ताम्बरः पातु नेत्रे में रक्तलोचनः॥2॥
नासां शक्तिधरः पातु मुखं में रक्तलोचनः।
भुजौ में रक्तमाली च हस्तौ शक्तिधरस्तथा॥3॥
वक्षः पातु वरागंश्च हृदयं पातु रोहितः।
। कटिं में ग्रहराजश्च मुखं चैव धरासुतः॥4॥
जानुजङ्घे कुजः पातु पादौ भक्तप्रियः सदा।
सर्वाण्यन्यानि 'चाङ्गानि रक्षेन्मे मेषवाहनः॥5॥
व इदं कवचं दिव्यं सर्वशत्रुनिवारणम्।
भूत-प्रेतपिशाचानां नाशनं सर्वसिद्धिदम्॥6॥
सर्वरोगहरं चैव सर्वसम्प्रत्प्रदं शुभम्।
मुक्ति-मुक्तिप्रदं नृणां सर्वसौभाग्य वर्धनम्॥
रोगबन्धविमोक्षं च सत्यमेतन संशयः॥7॥
4.बुध ग्रह शान्ति अनुष्ठान
सोने क़े पत्र को गौपंचामृत से शुद्ध करके यहां दिये गये
यंत्र को खुदवायें। पंन्ना यां मूंग की जड़ को पंचामृत सें सुद्ध
करके रख लें। केले के पत्ते पर यन्त्र, रत्न एवं जड़ी रखकर माता दुर्गा की पूजा करके अर्धरात्रि के समय 21
कवच या मन्त्र प्रतिदिन जाप करें। यह जाप 21 दिन तक चलना चाहिए। इसके बाद जड़ी को दाहिनी बाँह में
हरे धागे से बांधे। तावीज सोने का होना चाहिएं। पन्ने को सोने की अंगूठी में जड़कर दाहिने हाथ की कनिष्टिका में पहनना चाहिए। पन्ना 6 रत्ती का होना चाहिए। जाप किसी भी शुभ बुधवार से प्रारम्भ करें।
बुधयन्त्र
बुध कवचम्
बुधस्तु पुस्तकबंधर कुंकुमस्य समधुतिः।
पीताम्बरः पातु पीतमाल्यानुलेपनः॥1॥
कटि च पातु में सौम्यः शिरोदेशं बुधस्तथा।
नेत्रे ज्ञानमयः पातु श्रोते पातु निशाप्रियः॥2॥
प्राणं गन्धप्रियः पातु जिह्वां विधाप्रदो मम्।
कंठ पातु विधोः पुत्रो भुजौ पुस्तकभूषण ॥3॥
वक्षः पातु वराङ्गश्च हृदयं रोहिणीसुतः।
नाभिं पातु सुराराध्यो मध्यं पातु खगेश्वरः।।4।।
जानुनी रौहिणेयश्च पातु जोऽखिलप्रदः।
पादौ में बोधनः पातु-पातु सौम्योअखिल वदुः॥5॥
एतद्धि कवचं दिव्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
सर्वरोगपशमनं सर्वदुःख-निवारणम्।।6।
आयुशरोग्यशुभदं पुत्र-पौत्र-प्रवर्धनम्।
यः पठेच्छृणुयाद वाऽपि सर्वत्र विजयी भवेत्॥7॥
5.बृहस्पति ग्रह शान्ति अनुष्ठान
सोने या चांदी के पत्र पर यहां दिये गये
यंत्र को खुदवायें उसे पंचामत से सुद्ध कर ले I 5 रत्ती के पुखराज या केले की जड़ को भी पंचामृत से शुद्ध करके रख लें। ब्रह्म मुहूर्त में पूर्व
की ओर मुख करके केले के पत्ते पर यन्त्र, रत्न एवं जड़ी को रखें। घी का दीपक जलाये गणेशजी की पूजा-अर्चना करें। प्रतिदिन 21 कवच, मन्त्र या स्तोत्र का पाठ करें। ऐसा 43 दिन तक करेंI सिद्ध जड़ को बांह में एवं रत्न को 6 मासे सोने की अंगूठी में जड़कर बृहस्पति की उंगली में पहनना चाहिए। यन्त्र को पूजा घर में रखकर प्रतिदिन पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
बृहस्पति यन्त्र
बृहस्पति कवचम्
अभीष्टफलदं देवं सर्वज्ञं सुरपूजितम्।
अक्षमालाधरं शान्तं प्रणमामि बृहस्पतिम्॥1॥
बृहस्पतिः शिरः पातु ललाटं पातु में गुरु।
कर्णी सुरगुरुः पातु नेत्रे भेऽभीष्टदायकः॥2॥
जिह्वां पातु सुराचार्यों नासां में वेदवारणः।
मुखं में पातु सर्वज्ञो कण्ठं में देवता गुरुः॥3॥
भुजावाङ्गिरस पातु करौ पातु शुभप्रदः।
स्तनौ में पातु वागीशः कुक्षि में शुभलक्षणः॥4॥
नाभिं देवगुरुः पातु मध्यं पातु सुखप्रदः।
काटें पातु जगद्वन्ध अरु में पातु वाक्पतिः।।5।।
जानजङ्घे सुराचार्यः पादौ विश्वात्मकस्तथा।
अन्यानि यानि चाङ्गानि रक्षेन्ये सर्वतो गुरुः॥6॥
इत्येतत् कवचं दिव्यं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नर।
सर्वान् कामानवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत्॥7॥
सूर्येन्दु-क्षितिज-प्रियो-बुधसि” शत्रुः सामश्चापरे।
सप्ताङ्गद्विभवः शुभः सुरगुरुः कुर्यात् सदा मंगलम्॥8॥
6.शुक्र ग्रह शान्ति अनुष्ठान
7 रत्ती क़े हीरे या गूलर एवम्
चाँदी क़े पत्र को
पंचामृत से शुद्ध
करके किसी शुभ शुक्रवार को यहां दिये गये
यंत्र को खोदें। पूर्व के अनुसार में उत्तर की ओर मुख करके काली जी की पूजा खीर, लाल फूल, लाल फल, रक्त चन्दन
एवं सरसों के तेल का दीपक
जलाकर करें। मन्त्र का जाप प्रतिदिन
21 बार करें। यह अनुष्ठान
कृष्ण पक्ष में किया जाता है। समय अर्द्धरात्रि
हैI रत्न को सात मासे सोने की अंगूठी में शुक्र यन्त्र यी अंगुली में धारण करें। जड़ी लाल धागे एवं तांबे के तावीज से दाहिनी बांह में बांधी
जाती है I
शुक्र यंत्र
शुक्र कवचम्
मृणाल-कुन्देन्दू-पयोज सुप्रभं श्वेताम्बरं प्रस्तृतमक्षमालिनम्।
समस्तशास्त्रार्थविधि महान्तं ध्यायेत् कविं वाञ्छितमर्थसिद्धये॥1॥
शिरो में भार्गवः पातु भालं पातु ग्रहाधिपः।
नेत्रे दैत्यगुरुः पातु श्रोते में चन्दनधुतिः॥2॥
पातु में नासिकां काव्यो वदनं दैत्यवन्दितः।
वचनं चोशनाः पातु कण्ठं श्रीकण्ठभक्तिमान्॥3॥
भु|
तेजोनिधिः पातु कुक्षिं पातु मनोब्रजः।
नाभिं भृगुसुतः पातु मध्यं पातु महीप्रियः॥4॥
कटिं में पातु विश्वात्मा ऊरु में सुरपूजितः।
जानुं जाऽयहरः पातु जो ज्ञानवतां बरः॥5॥
मुल्फों गुणनिधिः पातु पातु पादौ बराम्बरः।
सर्वाण्यंगनि में पातु स्वर्णमालापरिष्कृतः॥6॥
यदं कवचं दिव्यं पठति श्रद्धयान्वितः।
न तस्य जायते पीड़ा भार्गवस्य प्रसादतः॥7॥
7.शनि ग्रह शान्ति अनुष्ठान
काले घोड़े के अगले दाहिने पैर की नाल को फैलाकर पत्र बनवाकर निम्नलिखित
यन्त्र खुदवा लें। इसी की एक अंगूठी भी बनवा लें, जो आपकी मध्यमा अंगुली में आ सके ।इसमें10 रत्ती का नीलम जड़वायें। इन दोनों को पंचामृत से शुद्ध करके केले के पत्ते पर रखकर
अर्द्धरात्रि में दक्षिण की ओर मुख करके बैठे। भैरव महाराज की पूजा-अर्चना करें I 21मन्त्र या कवच का पाठ करें। सरसों के तेल का दीपक जलायें। भैरवजी की पूजा चमेली
कें फूल, लाल सिन्दूर एवं चन्दन से करनी चाहिए। इस समय शम्मी के वृक्ष की जड़ को अंगूठी के स्थान पर सिद्ध किया जा सकता है। अंगूठियां बिना रत्न के भी सिद्ध की जाती है जड़ीस्टील के तावीज में काले धागे से बांधनी चाहिए।
शनि यन्त्र
शनि कवचम्
नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटो ग्रधस्थितस्रासकरो धनुपमान्।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद् वरदः प्रशस्तः।।1।।
श्रृणुध्वमृषयः सर्वे शनिपीड़ाहंस्महत्।
कवचं शनिराजस्य सौरोदिमनुत्तमम्॥2॥
कवचं देवतावासं वज्रपंचरसंज्ञकम्।
श्नैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्॥3॥
ॐ श्रीं शनैश्चरः पातु भालं में सूपनन्दन।
नेत्रे छायात्मजः पातु-पातु कौँ यमानुजः॥4॥
नासां वैवस्वतः पातु मुखं में भास्करः सदा।
स्निग्धकण्ठश्च में कण्ठं भुजौ पातु महाभुजः॥5॥
स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः।
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्वथा॥6॥
नाभि ग्रहपतिः पातु मन्दः पातु कटि तथा।
अरु ममान्तकः पातु यमो जानुयुंग तथा॥7॥
पादौ मन्दगतिः पातु सर्वांग पातु पिप्पलः।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् में सूर्यनन्दनः॥8॥
इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य यः।
न तस्य जायते पीड़ा प्रीतो भवति सूर्यजः॥9॥
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थान गतोऽपि वा।
कलत्रस्थो गतोवाऽपि, सुपीतस्तु सदा शनि॥10॥
अष्टमस्थे सूर्यसूटे व्यये जन्मद्वितीयगे।
कवचं पठते नितयं न पीड़ा जायते क्वचित्॥11॥
इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यनिर्मितं पुरा।
द्वादशाष्टम-जन्मस्थ-दोषान्नाशयते रदा।
जन्मलग्नस्थितान् दोषान् सर्वान्नाश्यते प्रभुः॥12॥
8.राहु ग्रह शान्ति
जस्ते के पत्र को पंचामृत से शुद्ध करके यहां दिये गये राहु यंत्र खुदवायें। जस्ते की सात मासे की अंगूठी में सात मासे के गोमेद को जड़वाकर इसे भी पंचामृत से शुद्ध कर लें। किसी शुभ समयका के बुधवार को नैऋत्य कोण की ओर मुख करके सन्ध्या काल में घी का दीपक जलाकर, चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए। शिवं कीं
पूजा एवं उनके मृत्युंजय मन्त्र का जाप भी विशेष फलदायी होता है। इसकी जड़ी असगंध
की जड़ है। इसे चांदी के तावीज में स्लेटी रंग के धागे से गर्दन में पहनना चाहिए।
राहुयंत्र
राहु कवचम्
प्रणमामि सदा राहूं सूर्पाकारं किरीतिनम्।
सैहिकेयं करालास्यं लोकानामभयप्रदम्॥1॥
नीलाम्बरं शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः।।
चक्षुषी पातु में राहूः श्रोजे त्वर्धशरीरवान्॥2॥
नासिकां में धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम।
जिह्वा में सिंहिकासूनुः कण्ठं में कठिनाधिकः॥3॥
भुजंग्रेशो भुजौ पातु नीलमात्याम्बरः करौ।
पातु वक्ष स्थलं मन्त्री पातु कुक्षिं विधुन्तुदः॥4॥
कटिं में विकटः पातु उरु में सुरपूजितः।।
स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंधे में पातु जाऽयह॥5॥
फौ ग्रहपतिः पातु पादौ में भीषणाकृतिः।।
सर्वाव्यंगानि में पातु नीलचन्दनभूषणः॥6॥
राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो,
भक्त्या पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन्।
प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु,
रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात्॥7॥
9.केतु ग्रह शान्ति अनुष्ठान
सोने के पत्र पर यहां दिये गये यन्त्र को खुदवायें। यन्त्र को पंचामृत से शुद्ध कर लें। 9 रत्ती के लहसुनिया को सोने की अंगूठी में जड़वायें। इसे भी शुद्ध कर लें। केतु ग्रह की शान्ति के ळीये शनिवार की अर्द्धरात्रि में ईशान की ओर मुख करके बैठे। इस समय देवी काली की पूजा करें। इस अनुष्ठान के समय पवित्रता एवं ब्रह्मचर्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए आहार सुपाच्य, किन्तु गरम प्रवृत्ति का लेना चाहिए। कुश की जड़ को सिद्ध करके धारण करना लाभदायक होता है।
केतु यन्त्र
केतु कवचम्
केतूं करालवदनं चित्रवर्णं किरीटिनम्।
प्रणमामि सदाकेतुं ध्वजाकारं ग्रहेश्वरम्॥1॥
त्रितवर्णः शिरः पातु भालं धूम्रसभधुतिः।
पातु नेत्रे विंग लाक्षः श्रुती में रक्तलोचनः॥2॥
घ्रावं पातु सुवर्णाभश्चिबुकं सिंहिकासुतः।
पातु कंठं च में केतूः स्कन्धौ पातु ग्रहाधिपः॥3॥
हस्तौ पातु सुरश्रेष्ठः कुक्षिं पातु महाग्रहः।
सिंहासनः कहिं पातु मध्यं पातु महासुरः॥4॥
उरु पातु महाशीर्षों जानुनी मेऽतिकोपनः।
पातु पादौ च में क्रूरः सर्वांग नरपिंगलः॥5॥
य इदं कवचं दिव्यं सर्वरोगविनाशनम्।
सर्वशत्रुविनाशं च धारयेद् विजयी भवेत्॥6॥
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