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Wednesday 27 November 2019

APSARA(नाभिदर्शना अप्सरा- Nabhi darshna Apsara)


APSARA
नाभिदर्शना अप्सरा-
Nabhi darshna Apsara

नाभिदर्शना अप्सरा साधना:
यह एक दिन की साधना है, और कोई भी साधक इस साधना को सिद्ध कर सकता है। किसी भी शुक्रवार की रात्रि को यह साधना सिद्ध की जा सकती है। इस साधना को सिद्ध करने के लिए थोड़े बहुत धैर्य की जरूरत है, क्योंकि कई बार पहली बार में सफलता नहीं भी मिल पाती, तो साधक को चाहिए, कि वह इसी साधना को दूसरी बार या तीसरी बार भी सम्पन्न करें, परंतु अगले किसी भी शुक्रवार की रात्रि को ही यह साधना करें।
साधना समय:
यह साधना रात्रि 10 बजे को ही सम्पन्न की जा सकती है, और साधक चाहे तो अपने घर में या किसी भी अन्य स्थान पर इस साधना को सम्पन्न कर सकता है। किसी भी शुक्रवार की रात्रि को साधक सुंदर, सुसज्जित वस्त्र पहने, इसमें यह जरूरी नहीं है कि साधक धोती ही पहिने, अपितु उसको जो वस्त्र प्रिय हो, जो वस्त्र उसके शरीर पर खिलते हों, या जिन वस्त्रों को पहिनने से वह सुन्दर लगता हो, वे वस्त्र धारण कर साधक उत्तर दिशा की ओर मुंह कर आसन पर बैठे। बैठने से पूर्व अपने वस्त्रों पर सुगन्धित इत्र का छिड़काव करें और पहले से ही दो सुंदर गुलाब की मालाएं ला कर अलग पात्र में रख दें। यदि गुलाब क, माला उपलब्ध न हो तो किसी भी प्रकार के पुष्पों की माला ला कर रख सकता है। फिर सामने एक रेशमी वस्त्र पर अद्वितीय 'नाभिदर्शना महायंत्र' को स्थापित करें और केसर से उसे तिलक करें। यंत्र के पीछे नाभिदर्शना चित्र' को फ्रेम में मढ़वा कर रख दें, और सामने सुगन्धित अगरबत्ती एवं शुद्ध घृत का दीपक लगाएं।

संकल्प :
इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें, कि मैं अमुक गोत्र. अमुक पिता का पुत्र, अमुक नाम का साधक, नाभिदर्शना अप्सरा को प्रेमिका रूप में सिद्ध करना चाहता हूं, जिससे कि वह जीवन भर मेरे वश में रहे, और मुझे प्रेमिका की तरह ही सुख, आनंद एवं ऐश्वर्य प्रदान करे। इसके बाद 'नाभिदर्शना अप्सरा माला' से निम्न । मंत्र जप संपत्र करें। इसमें 51 माला मंत्र जप उसी रात्रि को सम्पन्न हो जाना चाहिए. हो सकता है, इसमें तीन या चार घंटे लग सकते हैं। अगर बीच में घुघुओं की आवाज आए या किसी का स्पर्श अनुभव हो, साधक विचलित न हो और अपना ध्यान न हयाएं, अपित् 51 माला मंत्र जप एकाग्र चित्त हो कर सम्पन्न कर। इस साधना में जितनी ही ज्यादा एकाग्रता होगी, उतनी ही ज्यादा सफलता मिलेगी। 51 माला पूरी होते होते जब यह अद्वितीय अप्सरा घुटने से घटना सटाकर बैठ जाए, तब मंत्र जप पूरा होने के बाद साधक अप्सरा माला को स्वयं धारण कर लें, और सामने रखी हुई गलाब की माला उसके गले में पहिना दें। ऐसा करने पर नाभिदर्शना अप्सरा भी सामने रखी हुई दूसरी माला उठा कर साधक के गले में डाल देती है। तब साधक नाभिदर्शना अप्सरा सेवचन लेले कि मैं जब भी अप्सरा माला से एक माला मंत्र जप करूं, तब तुम्हें मेरे सामने सशरीर उपस्थित होना है. और मैं जो चाहूं वह मुझे प्राप्त होना चाहिए तथा पूरे जीवन भर मेरी आज्ञा को उल्लंघन न हो। तब नाभि दर्शना अप्सरा साधक के हाथ पर अपना हाथ रखकर वचन देती है, कि मैं जीवन भर आपकी इच्छानुसार कार्य करती रहूंगी। इस प्रकार साधना को पूर्ण समझें, और साधक अप्सरा के जाने के बाद उठ खड़ा हो। साधक को चाहिए, कि वह इस घटना को केवल अपने गुरु के अलावा और किसी के सामने स्पष्ट न करे
साधना सिद्ध मंत्र -
|| ॐ ऐं श्री नाभिदर्शना अप्सरा प्रत्यक्ष श्री ऐं फट् ।।
उपरोक्त मंत्र गोपनीय है, साधना सम्प, होने पर नाभिदर्शना अप्सरा महायंत्र को अपने गोपनीय स्थान पर रख दें, और अप्सरा चित्र को भी अपने बाक्स में रख दें। गले में जो अप्सरा माला पहनी हुई है, वह भी अपने घर में गुप्त स्थान पर रख दें, जिससे कि कोई दूसरा उसका उपयोग न कर सके। जब साधक को भविष्य में नाभिदर्शना अशरा को बुलाने की इच्छा हो. तब उम महायंत्र के सामने अपमरा माला से उपरोक्त मंत्र की एक माला मंत्र जप कर लें। अभ्यास होने के बाद तो यंत्र या माला की आवश्यकता भी नहीं होती, केवल माला करने पर ही अप्सरा प्रत्यक्ष प्रकट हो जाती है।


Tuesday 26 November 2019

APSARA,(मृगाक्षी अप्सरा साधना-MRIGAKSHI APSARA SADHANA)


APSARA SADHNA

मृगाक्षी अप्सरा साधना-MRIGAKSHI APSARA SADHANA

APSARA

अप्सरा सिद्धि प्राप्त करना किसी भी दृष्टि से अमान्य और अनैतिक नहीं है। उच्चकोटि के योगियों, सन्यासियों, ऋषियों और देवताओं तक ने अप्सराओं और किन्नरियों की साधना की है। यों तो मंत्र महोदधि' आदि अन्य तांत्रिक ग्रंथों में 108 विभिन्न अप्सराओं की प्रामाणिक साधनाएं दी हुई हैं, और उनमें से कई अप्सराओं की साधनाएं साधकों ने सिद्ध की हैं, और उसका लाभ उठाया है। पर हमें 'सुरति प्रिया'वर्ग की अप्सरा साधना का प्रामाणिक विवरण प्राप्त नहीं हो पा रहा था।  अप्सरा साधनाओं के साथ भी यही हुआ कि उन्हें अश्लीलता, ओछेपन, काम वासना का प्रवर्धन करने वाली साधनाएं समझ लिया गया जबकि वस्तु स्थिति तो इसके सर्वथा विपरीत है। सुरति प्रिया एक अप्सरा का भी नाम है और अप्सराओं के एक वर्ग का भी नाम है। मृगाक्षी, इसी सुरति प्रिया वर्ग की शीर्षस्थ नायिका है। सुरति प्रिया का सीधा सा तात्पर्य है जो रति प्रिय हो। रति-प्रिय शब्द का यदि सामान्य अर्थ लगाएं तो वह वासनात्मक ही होगा किंतु इसी रतिप्रिय शब्द में 'सु"लगा कर यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि ऐसा क्रीड़ा जो शालीन हो, सुसभ्य हो, आनंदप्रद हो . . . और ऐसा तो तभी संभव हो सकता है जब साधक स्वयं शिष्ट, शालीन, सुसण्य हो।
उसे वह कला आती हो कि कैसे किसी स्त्री से वासनात्मक बिम्बों को प्रकट किए बिना भी मधुर वार्तालाप किया जा सकता है, कैसे वह मधुर नोक झोंक की जा सकती है, जो किसी प्रेमी व प्रेमिका के मध्य सदैव चलती रहने वाली क्रीड़ा होती है। मनाक्षी ती सम्पूर्ण रूप से प्रेमिका ही होती है, मधुर ही होती है, अपने साधक को रिझाने की कला जानती है, उसे तनावमुक्त करने के उपाय सृजित करती रहती है, उसे चिंतामुक्त बनाए रखने के प्रयास करती रहती है। तभी तो संन्यासियों के मध्य मृगाक्षी से अधिक लोकप्रिय कोई भी अप्सरा है ही नहीं। साधकों को यह जिज्ञासा हो सकती है कि कैसे एक ही अप्सरा अनेक अनेक संन्यासियों के मध्य उपस्थित रह सकती है? इसके प्रत्युत्तर के लिए ध्यान रखना चाहिए कि अप्सरा मूलत: देव वर्ग में आती है जो वर्ग अपने स्वरूप को कई-कई रूपों में विभक्त कर सकती है। अप्सरा साधना सिद्ध करने से व्यक्ति निश्चिन्त और प्रसन्न चित्त बना रहता है, उसे अपने जीवन में मानसिक तनाव व्याप्त नहीं होता। अप्सरा के माध्यम से उसे मनचाहा स्वर्ण, द्रव्य, वस्त्र, आभूषण और अन्य भौतिक पदार्थ उपलब्ध होते रहते हैं। यही नहीं अपितु सिद्ध करने पर अप्सरा साधक के पूर्णतः वशवर्ती हो जाती है, और साधक जो भी आज्ञा देता है, उस आज्ञा का वह तत्परता के साथ पालन करती है। साधक के चाहने पर वह सशरीर उपस्थित होती है, यो सूक्ष्म रूप से साधक की आंखों के सामने वह हमेशा बनी रहती है। इस प्रकार सिद्ध की हुई अप्सरा "प्रिया" रूप में ही साधक के साथ रहती है।  मृगाक्षी का तात्पर्य मृग के समान भोली और सुन्दर आंखों वाली अप्सरा से है। जो सुंदर, आकर्षक, मनोहर, चिरयौवनवती और प्रसत्र चित्त अप्सरा है, और निरंतर-साधक का हित चिंतन करती रहती है, जिसके शरीर से निरंतर पद्म गंध प्रवाहत होती रहती है, और जो एक बार सिद्ध होने पर जीवन भर साधक के वश में बनी रहती है। स्वामी जी ने हमें इससे संबंधित तांत्रिक प्रयोग स्पष्ट किया था, जो कि वास्तव में ही अचूक और महत्वपूर्ण है।

किसी भी शुक्रवार की रात्रि को साधक अत्यन्त सुंदर सुसज्जित वस्त्र पहिन कर साधना स्थल पर बैठे। इसमें किसी भी प्रकार के वस्त्र पहने जा सकते हैं, जो सुंदर हों आकर्षक हों, साथ ही साथ अपने कपड़ों पर गुलाब का इत्र लगावे और कानमें भी गुलाब के इत्र का फोहा लगा लें। फिर सामने गुलाब की दो मालाएं रखें और उसमें से एक माला साधना के समय स्वयं धारण कर लें। इसके बाद एक थाली लें, जो कि लोहे की या स्टील की न हो, फिर उस
थाली में निम्न मृगाक्षी अप्सरा यंत्र का निर्माण 'चांदी के तार से या चांदी की सलाकासे या केसर से अंकित करें। 

 मृगाक्षी अप्सरायंत्र:









फिर इस पात्र में , 'दिव्य तेजस्वी मृगाक्षी अप्सरा महायंत्र' स्थापित करें इस यंत्र के चार कोनों पर चार बिन्दियां लगाएं और पात्र के चारों ओर चार घी के दीपक लगाएं, दीपक में जो घी डाला जाए, उसमें थोड़ा गुलाब का इत्र भी मिला दें, फिर पात्र के सामने पांचवां बड़ा सा दीपक घी का लगावें और अगरबत्ती प्रज्जवलित करें तथा इस मंत्र सिद्ध तेजस्वी "मृगाक्षी महायंत्र" पर 21 गुलाब के पुष्प निम्न मंत्र काउच्चारण करते हुए चढ़ाएं।
मंत्र:
|| ॐ मृगाक्षी अप्सरायै वश्यं कुरु कुरु फट् ।।

जब 21 गुलाब के पुष्प चढ़ा चुकें तब प्रामाणिक और सही स्फटिक माला से निम्न मंत्र की 21 माला मंत्र 21दिन तक जप करें, शुक्रवार से लगातार 21दिन तक करे , इस मंत्र जप में मुश्किल से दो घंटे लगते हैं।

गोपनीय मृगाक्षी महामंत्र:

|| ॐ श्रृं श्रैम. मृगाक्षी अप्सरायै सिद्धं वश्यं  श्रैम श्रृं फट् ।।

जब 21 माला मंत्र जप हो जाए, तब वह स्फटिक माला भी अपने गले में धारण कर लें, ठीक इसी अवधि में जब मृगाक्षी अप्सरा कमरे में उपस्थित हो, (साधना करते समय कमरे में साधक के अलावा और कोई प्राणी न हो) तब सामने रखी हुई दूसरी गुलाब के पुष्प की माला उसके गले में पहना दें, और वचन लें कि वह जीवन भर अमुक गोत्र के, अमुक पिता के, अमुक पुत्र (साधक) के वश में रहेगी, और जब भी वह इस मंत्र का ग्यारह बार च्चारण करेगा तब वह उपस्थित होगी, तथा जो भी आज्ञा देगा उसका तत्क्षण पालन करेगी।
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