APSARA SADHNA
अप्सरा सिद्धि प्राप्त करना किसी भी दृष्टि से
अमान्य और अनैतिक नहीं है। उच्चकोटि के योगियों, सन्यासियों,
ऋषियों
और देवताओं तक ने अप्सराओं और किन्नरियों
की साधना की है। यों तो मंत्र महोदधि' आदि अन्य तांत्रिक ग्रंथों में 108 विभिन्न अप्सराओं की प्रामाणिक साधनाएं दी हुई
हैं, और उनमें से कई अप्सराओं की साधनाएं
साधकों ने सिद्ध की हैं, और उसका लाभ उठाया है। पर हमें 'सुरति प्रिया'वर्ग की अप्सरा साधना का प्रामाणिक विवरण
प्राप्त नहीं हो पा रहा था। अप्सरा साधनाओं के साथ भी यही हुआ कि
उन्हें अश्लीलता, ओछेपन, काम
वासना का प्रवर्धन करने वाली साधनाएं समझ लिया गया
जबकि वस्तु स्थिति तो इसके सर्वथा विपरीत है। सुरति
प्रिया एक अप्सरा का भी नाम है और अप्सराओं के एक वर्ग का भी
नाम है। मृगाक्षी, इसी सुरति प्रिया वर्ग की शीर्षस्थ
नायिका है। सुरति प्रिया का सीधा सा तात्पर्य है
जो रति प्रिय हो। रति-प्रिय शब्द का यदि सामान्य अर्थ लगाएं तो वह वासनात्मक ही होगा किंतु इसी रतिप्रिय शब्द में 'सु"लगा
कर यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया
है कि ऐसा क्रीड़ा जो शालीन हो, सुसभ्य हो, आनंदप्रद हो . .
. और ऐसा तो तभी संभव हो सकता है जब साधक स्वयं
शिष्ट, शालीन, सुसण्य हो।
उसे वह कला आती हो कि कैसे किसी स्त्री से
वासनात्मक बिम्बों को प्रकट किए बिना भी मधुर
वार्तालाप किया जा सकता है, कैसे वह मधुर नोक झोंक की जा सकती है, जो किसी प्रेमी व प्रेमिका के मध्य सदैव चलती
रहने वाली क्रीड़ा होती है। मनाक्षी ती
सम्पूर्ण रूप से प्रेमिका ही होती है, मधुर ही होती है, अपने
साधक को रिझाने की कला जानती है, उसे
तनावमुक्त करने के उपाय सृजित करती रहती है, उसे चिंतामुक्त बनाए रखने के प्रयास करती रहती है। तभी तो संन्यासियों के
मध्य मृगाक्षी से अधिक लोकप्रिय कोई भी अप्सरा है ही
नहीं। साधकों को यह जिज्ञासा हो सकती है कि कैसे एक
ही अप्सरा अनेक अनेक संन्यासियों के मध्य उपस्थित रह सकती है?
इसके
प्रत्युत्तर के लिए ध्यान रखना चाहिए कि अप्सरा मूलत: देव वर्ग में आती है जो वर्ग अपने स्वरूप को कई-कई रूपों में विभक्त कर सकती है। अप्सरा साधना सिद्ध करने से व्यक्ति निश्चिन्त और प्रसन्न चित्त बना
रहता है, उसे अपने जीवन में मानसिक तनाव व्याप्त नहीं होता। अप्सरा के माध्यम
से उसे मनचाहा स्वर्ण, द्रव्य, वस्त्र,
आभूषण
और अन्य भौतिक पदार्थ उपलब्ध होते रहते हैं। यही
नहीं अपितु सिद्ध करने पर अप्सरा साधक के पूर्णतः वशवर्ती हो जाती है, और साधक जो भी आज्ञा देता है, उस आज्ञा का वह तत्परता के साथ पालन
करती है। साधक के चाहने पर वह सशरीर उपस्थित
होती है, यो सूक्ष्म रूप से साधक की आंखों के
सामने वह हमेशा बनी रहती है। इस प्रकार सिद्ध की हुई अप्सरा "प्रिया" रूप में ही साधक के साथ रहती है। मृगाक्षी का तात्पर्य मृग के समान भोली और सुन्दर आंखों वाली अप्सरा से है। जो सुंदर, आकर्षक,
मनोहर,
चिरयौवनवती
और प्रसत्र चित्त अप्सरा है, और निरंतर-साधक का हित चिंतन करती रहती है, जिसके शरीर से निरंतर पद्म गंध प्रवाहत होती
रहती है, और जो एक बार सिद्ध होने पर
जीवन भर साधक के वश में बनी रहती है। स्वामी जी ने हमें इससे संबंधित तांत्रिक प्रयोग स्पष्ट किया था, जो कि वास्तव
में ही अचूक और महत्वपूर्ण है।
किसी भी शुक्रवार की रात्रि को साधक अत्यन्त
सुंदर सुसज्जित वस्त्र पहिन कर साधना स्थल
पर बैठे। इसमें किसी भी प्रकार के वस्त्र पहने जा सकते हैं, जो सुंदर हों आकर्षक हों, साथ ही साथ अपने कपड़ों पर गुलाब का
इत्र लगावे और कानमें भी गुलाब के इत्र का फोहा लगा लें। फिर
सामने गुलाब की दो मालाएं रखें और उसमें से एक माला साधना के
समय स्वयं धारण कर लें। इसके बाद एक
थाली लें, जो कि लोहे की या स्टील की न हो, फिर उस
थाली में निम्न मृगाक्षी अप्सरा यंत्र का
निर्माण 'चांदी के तार से या चांदी की सलाकासे या केसर से अंकित करें।
मृगाक्षी अप्सरायंत्र:
मृगाक्षी अप्सरायंत्र:
फिर इस पात्र में ,
'दिव्य
तेजस्वी मृगाक्षी अप्सरा महायंत्र'
स्थापित
करें। इस यंत्र के चार कोनों पर चार
बिन्दियां लगाएं और पात्र के चारों ओर चार घी के दीपक लगाएं,
दीपक
में जो घी डाला जाए, उसमें थोड़ा गुलाब का इत्र भी मिला दें,
फिर पात्र के सामने पांचवां बड़ा सा दीपक घी का लगावें और अगरबत्ती
प्रज्जवलित करें तथा इस मंत्र सिद्ध तेजस्वी
"मृगाक्षी महायंत्र" पर 21 गुलाब के पुष्प निम्न मंत्र काउच्चारण करते
हुए चढ़ाएं।
मंत्र:
|| ॐ मृगाक्षी अप्सरायै वश्यं कुरु कुरु
फट् ।।
जब 21 गुलाब के पुष्प चढ़ा चुकें तब
प्रामाणिक और सही स्फटिक माला से निम्न मंत्र की 21
माला मंत्र 21दिन तक जप करें, शुक्रवार
से लगातार 21दिन तक करे , इस मंत्र जप में
मुश्किल से दो घंटे लगते हैं।
गोपनीय मृगाक्षी महामंत्र:
|| ॐ श्रृं श्रैम.
मृगाक्षी अप्सरायै सिद्धं वश्यं श्रैम
श्रृं फट् ।।
जब 21 माला मंत्र जप हो जाए, तब
वह स्फटिक माला भी अपने गले में धारण कर लें, ठीक इसी अवधि में जब मृगाक्षी अप्सरा
कमरे में उपस्थित हो, (साधना करते
समय कमरे में साधक के अलावा और कोई प्राणी न हो) तब सामने रखी हुई दूसरी गुलाब के पुष्प की माला उसके गले में पहना दें, और
वचन लें कि वह जीवन भर अमुक गोत्र के, अमुक
पिता के, अमुक पुत्र (साधक) के वश में रहेगी, और जब भी वह इस मंत्र का ग्यारह बार च्चारण करेगा तब वह उपस्थित होगी,
तथा
जो भी आज्ञा देगा उसका तत्क्षण पालन करेगी।
visit our site:https://vashikaranspecialistjyotish.com
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeletemrigakshi apsara yantra aap ko kesar ko pani me bhigo kar ink banani hae phir bhoj patra par anar ke kalam se banaiye,
Deletemala 21 karni hae 21 dino tak lagatar
Timing kya rahegi and ghr per ye sadhna kr skte hain???
ReplyDeleteTiming kya rahegi sadhna ki and ghr per kr skte hain
ReplyDelete10pm ke baad raat me aur isfatik ke mala use karne hae
ReplyDeletesir isme jo do mntr diye hen unme se konse mntr ka 21 din 21 mala jaap krna he , krpya smjhayen
Delete