GANESH PUJA
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किसी
भी कार्य का शुभारम्भ करने से पूर्व विधिवत गणेश पूजन का विधान है। यहां गणेशजी का एक प्रबल शक्तिशाली तांत्रिक
मंत्र दिया जा रहा है, जो साधकों की तांत्रिक साधना में सहायक हैं और सिद्धि प्रदान
करता है। भारतीय संस्कृति में गणेशजी ही ऐसे देवता हैं, जिनकी पूजा सर्वत्र किसी भी कार्य व
अनुष्ठान को निर्विघ्न सम्पन्न करने के लिए की जाती है। इन्हें गणनायक या गणपति की
पदवी प्राप्त है। गणेशजी को आध्यात्मिक क्षेत्र में भी आस्था प्राप्त है तथा तांत्रिक
सम्प्रदाय में तो गणेशजी सर्वोपरि हैं ही। यंत्र, मंत्र तथा तंत्र किसी भी साधना से पहले इनकी कृपा
परमावश्यक बताई गई है। संकट निवारण विद्याप्राप्ति तथा व्यवसाय की उन्नति
में, विशेषकर
शारीरिक व्याधियों व भूत-प्रेत बाधाओं में इनकी कृपा विशेष लाभप्रद होती है।
इनकी महत्ता इसी से मानी जा सकती है कि इनका नाम ही किसी कार्य के प्रारम्भ करने का
बोधकारक होता है। भगवान शंकर व पार्वती की कृपा प्राप्ति हेतु इनकी कृपा विशेष
सहायक सिद्ध होती है। तांत्रिक, पुजारी व शिल्पकार अपनी कला साधनाओं में कार्यारम्भ से
पहले इस देव शक्ति की प्रथम वन्दना करते हैं। ___ साधकों की सच्चे हृदय से की गई साधना
से गणेशजी अवश्य प्रसन्न होते हैं। गणेश साधना में बिना सिला हुआ वस्त्र, लाल चन्दन, पुष्प, धूप, दीप तथा लड्डू भोग के लिए अनिवार्य माने जाते हैं। मंत्र जाप में
मूंगा, लाल
चंदन तथा रुद्राक्ष की माला सिद्धिकारी होती है। असमर्थतावश यदि कोई साधन न जुटा
पाए तो साधक गणेश प्रतिमा अथवा चित्र को स्थापित कर, केवल सिन्दूर, धूप तथा दीप देकर साधना में प्रवृत्त
हो सकता है, परंतु
साधक इसमें
पूर्ण स्वच्छ तथा तन्मयता से साधना करे। सिद्धि का आधार उसकी आस्था तथा भक्ति भावना है। यह साधना गणेश चतुर्थी के
दिन से की जा सकती है। __साधना की समस्त तैयारी के बाद साधना
स्थल को लीप-पोतकर पवित्र कर लेना चाहिए। चन्दन (लाल), अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, आसन, माला तथा नैवेद्य आदि आवश्यक वस्तुएं पहले ही साधना स्थल पर
लाकर रखें क्योंकि साधनाकाल में उठने से मनोनिग्रह पर आघात पड़ता है, साथ ही आसुरी शक्तियों द्वारा भी विघ्न
पैदा किया जा सकता है। साधक को पूर्व की ओर मुख करके कुश या ऊनी आसन पर बैठना चाहिए। सर्वप्रथम पूजा के पश्चात साधक
विनियोग करे तथा फिर ध्यान लगाकर मंत्र जाप में संलग्न हो जाए।
विनियोग :
ॐ अस्य श्री गणपति महामंत्रस्य, गणक ऋषि, निपद गायत्री छन्दः, महागणपति देवता, सिद्धि लक्ष्मी गणपति मंत्र जपे विनियोगः।।
ॐ अस्य श्री गणपति महामंत्रस्य, गणक ऋषि, निपद गायत्री छन्दः, महागणपति देवता, सिद्धि लक्ष्मी गणपति मंत्र जपे विनियोगः।।
ध्यान
स्तुतिः
गजाननं
भूत गणादि सेवितं, कपित्थजम्बूफल चारु भक्षणम्।
उमासुतं
शोक विनाश कारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।
मंत्र
:
ॐ गं गणपतये नमः।
ॐ गं गणपतये नमः।
साधक
सर्वप्रथम देवता की विधिवत पूजा-अर्चना सम्पन्न कर भोग लगाएं। गणेश जी को प्रणाम करके ध्यान, विनियोग तथा स्तुति करने के बाद माला
को मस्तक से लगाएं तथा मंत्र जप
प्रारम्भ करे। साधक को यह भी संकल्प लेना चाहिए कि सिद्धि प्राप्त हो जाने तक प्रतिदिन वह कितनी बार माला का जप करता
रहेगा। इसके अतिरिक्त साधना विभिन्न नामों पर
आधारित मंत्रों से भी की जाती है जिसका समस्त विधान उपरोक्त मंत्र के समान ही करके किया जा सकता है।
1. ॐ
गणेशाय नमः।
2. ॐ
गं गणपतये नमः।
3. ॐ
लम्बोदराय नमः।
4. ॐ
एक दंताय नमः।
5. ग्लौं।
6. ॐ
विकटाय नमः।
7. ॐ
गं।
8. ॐ
विनाशकाय नमः।
9. ॐ
भालचन्द्राय नमः।
10. ॐ वक्रतुण्डाय नमः।
11. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरदये नमः।
12. ॐ गं गणपतये विघ्न विनाशिने स्वाहा।
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Very interesting
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