MANTRA
तंत्र का इतिहास
Tantra ka Itihas
सूक्ष्म रूप से देखा जाए तो तंत्र का विवरण
वेद-पुराणों से ही मिलना शुरू हुआ। वेद-पुराण
संसार के प्राचीनतम ग्रंथ माने गए हैं। इनमें सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन जिस प्रकार से किया गया है, वह स्वयं ही एक
तांत्रिक क्रिया है। इसी के अंदर सृष्टि
बनी। सारा विवरण बड़े चमत्कारी ढंग से दिया है। फिर हर 'अवतार' के
साथ तंत्र जुड़ता गया। ईश्वर 'अवतारी पुरुष' माना गया। वह
अद्भुत, अलौकिक माना जाने लगा। सभी उसके गुणगान करने लगे। इस प्रकार तंत्र का इतिहास मानव के जन्म काल से ही चलता आ रहा है। यह नामुमकिन नहीं है
कि उस काल में ऐसे 'तंत्र ज्ञान'
से
संबंधित पुरुष को ईश्वर का रूप दे दिया जाता रहा होगा। जैसा भी रहा हो। तंत्र का वास्तविक इतिहास लिखित रूप में गुरु
गोरखनाथ के समय से प्राप्त होता है। मेरा यह
विश्वास तो शुरू से ही रहा है कि तंत्र का उद्भव शंकर
और काली से है। अपनी बात आगे बढ़ाने से पूर्व गुरु गोरखनाथ की दुहाई देते हुए एक झारा लिख रहा हूं-
"काली
काली मां, काली जा बैठी पीपल की डाली
दोनों
हाथ बजावे ताली, हाथ
में लेकर मद की प्याली
आप
पीए वीरों को पिलाए, तेरा
वचन न जाए खाली
लगो
मंत्र परिभाषा, मेरे
गुरु का वचन सांचा
दुहाई
गुरु गोरखनाथ की।"
तांत्रिकों का आराध्य देव इन्हीं दो देवताओं को
माना गया है। शंकर को पुरुष और काली को
शक्ति का स्थान दिया गया है। यह एक सर्वमान्य सिद्धांत है कि
पुरुष और शक्ति का संयोग ही नए जीव की सृष्टि करता है। बिना इस योग
के जीव जगत हो ही नहीं सकता। फलत: तंत्र में काम को प्रधानता दी गई है। यह गया है कि ऊर्जा या काम से उत्पन्न ऊर्जा ही तंत्र की शक्ति है। तंत्र वास्तव
में एक शुद्ध विज्ञान है। सच्चाई तो यह है कि यह कोई भी वरदान,
अलौकिक
शक्ति या रहस्यमयी विद्या नहीं है, सिद्धांतों के साधना
पर आधारित एक क्रिया है। जब इस कार्य को (तंत्र को) संपन है
तो उसकी क्रिया साधारण मनुष्य की समझ में नहीं आती है। परिणाम
देखकर ही चमत्कृत हो उठता है। एक जादूगर अदश्य प्रकार
की वस्तुओं की बौछार शुरू कर देता है या एक मामूली कर
उन्हें फिर जोड़ देता है, आप उस क्रिया को समझ नहीं चकित रह जाते हैं। जादू से बहुत ही आश्चर्यजनक दीख कुल मिलाकर तंत्र एक विज्ञान है। इसका कार्य क्षेत्र का पर आधारित है। तंत्र की क्रिया दिखाई नहीं पड़ती । बिना कारण कोई कार्य नहीं हो सकता। तंत्र का भी
अपना कुछ सैद्धांतिक आधार है और इसी कारण
जो कुछ क्रियात्मक रूप से सामने आता है,
उसका
अपना एक आकार होता है। विज्ञान पर्याप्त प्रगति कर चका है।
मनुष्य का अपना शरीर भी एक चमत्कार है और वह स्वयं में भी एक शक्ति है। योग की ओर जब मनुष्य का ध्यान गया तो उसका उसे गहरा अनुभव हुआ,
मस्तिष्क
की असीमित शक्ति का अनुभव हुआ। उसे कुण्डलिनी, इड़ा, सुषुम्रा
का रोचक संसार मिला। फिर मनुष्य की ऊर्जा,
आभा
और मानसिक एकीकरण का चमत्कार सामने आया तंत्र एक बहुत सूक्ष्म और गहन विषय है।
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