TRATAK
TRATAK ,TRATAK MEDITATION
तंत्र साधक को जितना संभव हो सके, प्रातःकाल
उठना चाहिए तथा नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर
एकांत-शांत कक्ष में साधना करनी चाहिए क्योंकि दूसरे की उपस्थिति में ध्यान एकाग्र नहीं हो पाता। योग शास्त्र (महर्षि पांतांजलि योग दर्शनम्)
में त्राटक क्रिया पर विशेष बल दिया गया है।
इसके प्रायः तीन भाग किए गए हैं।
प्रथम : बाह्य त्राटक
द्वितीय : आंतर त्राटक
तृतीय : मध्य त्राटक
बाह्य त्राटक : बिना किसी
प्रकार का दबाव दिए खुली आंखों से किसी वस्तु यथा फूल, चित्र, प्रतिमा
व दीपक की लौ अथवा सूर्य-चन्द्रमा या तारे इत्यादि को एकटक अपलक आंखों से देखने को त्राटक कहते हैं। यह बाह्य त्राटक शीघ्र प्रभावकारी,
परन्तु
आंखों पर ज्यादा जोर पड़ने से किंचिद् कष्टकारी माना जाता
है। सामान्य आंखों वाले व्यक्ति ही इस त्राटक को करने
के पात्र हैं अन्यथा बच्चे व वृद्ध अथवा जिनकी आंखें खराब हों, उनके
लिए यह त्राटक नुकसानदायी साबित हो सकता।
आंतर त्राटकः
दोनों
आंखों को बंद करने के पश्चात भ्रूमध्य, नासिका का अग्र भाग,
नाभि व
हृदय स्थल को चक्षुवृत्ति की भावना मन में करके ध्यान करना, आंतर त्राटक कहलाता है। इससे अपने
इष्ट या ॐ तथा सूर्य की कल्पना की जाती है। यह काफी समय में पुष्ट होता है तथा
बाह्य त्राटक से ज्यादा प्रभावकारी माना गया है।
मध्य त्राटक:
किसी मूर्त वस्तु शालिग्राम (शिवलिंग) अथवा
किसी स्याही के धब्बे को
टकटकी लगाकर देखने का प्रक्रिया को मध्य त्राटक कहा जाता है।
तांत्रिक शक्ति अर्जित करने
के लिए इसका विधान परम सहायक होता है। इससे साधक शीघ्र ही अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में
कामयाब हो जाता है। इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान दिया जाना चाहिए।
1.एकांत
कमरे में घी का दीपक तथा सुगंधित धूप इत्यादि जलाकर कमरे की वायु शुद्ध कर लेनी चाहिए।
2. कोई
गहरे रंग का कागज या नीले रंग के वर्गाकार कपड़े पर बीच में चवन्नी के आकार की काली
बिन्दी बनाएं, फिर
उस कागज या कपड़े को किसी दीवार पर चिपका दें, ताकि बैठकर आसानी से ध्यान किया जा सके।
3. प्रातः
काल ब्रह्म मुहूर्त में ठीक 4 या
5 बजे से इस
प्रयोग को प्रारम्भ करें। इसके सामने सिद्धासन लगाएं। ऊनी कम्बल का आसन वह भी लाल रंग का हो तो
सर्वोत्तम है।
4. सामान्य
रूप से बिना किसी प्रकार का दबाव डाले, एकटक इसे देखते रहें तथा आंखों में आंसू आने पर पोंछ डालें। कुछ देर
रुककर पुनः अभ्यास प्रारम्भ कर दें। कुछ समय बाद पानी निकलना बंद हो जाता है।
5. त्राटक
की प्रारम्भिक अवस्था में प्रथम दिन मात्र 3 मिनट ही प्रयोग करें। प्रति तीन दिन बाद एक-एक मिनट बढ़ाते हुए इसे 11 मिनट तक ले जाएं,फिर धीरे-धीरे सहनशक्ति के अनुसार एक
घण्टे तक बिना व्यवधान के साधना पूर्ण हो जाने पर त्राटक की प्रथमावस्थाआ जाती है। अभ्यास काल में साधक को किसी प्रकार के
उत्तेजक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। लहसुन, प्याज, तेज मिर्च-मसाले तथा मद्य-मांस का सेवन
सर्वथा वर्जित है। त्राटककी सिद्धि से नेत्रों व मस्तिष्क में गर्मी बढती है अतः
अभ्यास के बाद दो-तीन बार
आध-आधे घण्टे पर आंखों को अच्छी प्रकार धोएं अथवा किसी बाल्टी में
पानी में आंखें खुली
रखें। इससे शीघ्र ही आंखें शीतल हो जाएंगी. परन्त सावधान आंखों को त्राटक के बाद बात समय हमेशा
ध्यान रहे कि मुंह में पानी भरने के बाद ही आंखों को धोएं तथा धोने
के बाद
पानी को कुल्ला करके निकाल दें। इससे आंखों की गर्मी दांतों तथा कानों में असर
नहीं डालती
तथा मस्तिष्क ठण्डा हो जाता है। इस प्रकार साधक को कम-से-कम तीन माह तक त्राटक क्रिया करनी चाहिए।
इसके कल
के विषय में लिखने से कोई फायदा नहीं। साधक अपने मन-मस्तिष्क की एकाग्रता तथा शक्ति का
चमत्कार स्वयं अनुभव करता है।
tratak meditation,tratak
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Nice
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