पंचांगुली साधना
PANCHANGULI
SADHNA
भविष्य ज्ञान के लिए यह एक सात्विक साधना है।
परन्तु इसके वाममार्गी रूप भी हैं। यहां हम
कहना चाहते हैं कि भविष्य के ज्ञान हेतु कर्णपिशाचनी साधना एवं इन साधनाओं में
उद्देश्य ही समान है। शक्तियां समान नहीं हैं।
ध्यान मन्त्र:
'ॐ पंचागुली महादेवी श्री सीमन्धर
शासने।
अधिष्ठात्री
करस्यासौ शक्तिः श्री त्रिदशेशितुः॥'
मन्त्र:
'ॐ नमो पंचागुंली परशरी परशरी माताय
मंगल
वशीकरणी लोहमय दण्डमाणिनी चौंसठ काम-
विहडनी
रणमध्ये राउलमध्ये दीवानमध्ये भूतमध्ये
प्रेतमध्ये
पिशाचमध्ये झोरिंगमध्ये डाकिनीमध्ये
शंखिनीमध्ये
यक्षिणीमध्ये दोषेणीमध्ये, शेरनीमध्ये
गुणीमध्ये
गारुणीमध्ये विवारीमध्ये दोषमध्ये दोषा-
शरणमध्ये
दुष्टमध्ये घोरकष्ट मुझ उपरे बुरो जो कोई
करावे
जड़े जड़ावे तत चित्ते तस माथे श्री माता
श्री
पंचागुंली देवी तणो वज्र निर्धार पड़े ॐ ठं ठंठं स्वाहा।'
विधि-
यह साधना किसी भी शुभ तिथि से प्रारम्भ करनी
चाहिए। वैसे हस्त, मार्गशीर्ष एवं फाल्गुन
नक्षत्र निर्देशित हैं। इस मन्त्र का सुबह, दोपहर, अर्धरात्रि
में निर्भय होकर जाप करें एवं
पंचांगुली यन्त्र
पंचांगली देवी को एक पान का पत्ता, उसके
ऊपर कपूर, कपूर के ऊपर बताशा एवं दो रखकर
कपुर में आग लगायें एवं मां भगवती को समर्पित करें। ऐसा करने में पंचांगली प्रसन्न होकर साधक को भूत, भविष्य, वर्तमान बताने
की सिद्धि प्रदान करती हैं और या किसी के भी
चेहरे को देख, भूत, भविष्य बताने में सम्पूर्णता, सफलता
हासिल कर लेता है। विधि प्रतिदिन की है।
108 दिन में सफलता मिलती है।
पंचांगुली साधना (द्वितीया)
साधना विधि:
1. इस
विधि में 'पंचांगुली यन्त्र' एवं 'स्फटिक माला'
में
विधि से प्राण-प्रतिष्ठा का अनुष्ठान करें।
2. पंचांगुली
साधना ब्रह्ममुहूर्त से ही करनी चाहिए।
3. पंचांगुली
साधना 108 दिन की साधना है। स्थान शान्त, पवित्र, निर्जीव
होना चाहिए।
4. मुख
पूर्व दिशा में और आसन तथा वस्त्र पीले धारण करने चाहिए।
5. फिर
पंचांगुली देवी का यन्त्र स्थापित कर दें एवं इसे किसी ताम्र प्लेट में रखें।
6. यन्त्र
पर कुमकुम से 'स्वस्तिक' का चिह्न
बनायें।
7. गणपति
पूजन के उपरान्त षोडशोपचार विधि से यन्त्र का विधिवत् पूजन करें।
ध्यान
मन्त्र:
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री पंचांगुली
देवीं ध्यायामि।
आवाहन मन्त्र:
ॐ
आगच्छागच्छ देवेशि त्रैलोक्य तिमिरापहे।
क्रियमाणां
मया पूजां गृहाण सुरसत्तमे॥
ॐ
भूर्भुवः स्वः श्री पंचांगुली देवताभ्यो नम: आवाहनं समर्पयामि।
आसन मन्त्र:
रम्यं
सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यं करं शुभम्।
आसनंच
मया दत्तं गृहाण परमेश्वरि॥
ॐ
भूर्भुव: स्व: श्री पंचांगुली देवताभ्यो नमः आसनं समर्पयामि।
स्नान मन्त्र:
गंगा
सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदा जलैः।
स्नापिताऽसि
मया देवि तथा शान्तिं कुरुष्व मे॥
पयस्नान मन्त्र:
कामधेनु
समुत्पन्नं सर्वेषां जीवनं परम्।
पावनं
यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम्॥
दधिस्नान मन्त्र:
पयसस्तु
समुदभूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्।
दध्यानीतं
मया देवि स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
मधुस्नान मन्त्र:
तरुपुरुष
समुदभूत सुस्वादु मधुर मधु।
तेजः
पुष्टिकर दिव्यं स्नानार्थ प्रति गृह्यताम्॥
घृतस्नान मन्त्र:
नवनीत
समुत्पन्नं सर्वसन्तोष कारकम्।
घृतं
तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
शर्करास्नान मन्त्र:
इक्षुसार
समुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका।
मलापहारिका
दिव्या स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
वस्त्र मन्त्र:
सर्वभूषाधिके
सौम्ये लोक लज्जा निवारणे।
मयोपपादिते
तुभ्यं वाससी प्रति गृह्यताम्।।
गन्ध मन्त्र:
श्रीखण्ड
चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं
सुरश्रेष्ठि चन्दनं प्रति गृह्यताम्॥
अक्षत मन्त्र:
अक्षताश्च
सुरश्रेष्ठि कुकुमाक्ता सुशोभिता।
मया
निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥
पुष्प मन्त्र:
ॐ
माल्यादीनि सुगंधीनि मालत्यादीनि वै विभे।
मयोपनीतानि
पुष्पाणि पीत्यर्थं प्रति गृह्यताम्॥
दीप मन्त्र:
साज्यं
च वर्तिसंयुक्तं वहिना योजितं मया।
दीपं
गृहाण देवेशि त्रैलोक्य तिमिरापहे॥
नैवेद्य मन्त्र:
नैवेद्यं
गृह्यतां देवि भक्तिं मे चला कुरु।
ईप्सितं
मे वरं देहि परत्रेह परां गतिम्॥
दक्षिणा मन्त्र:
हिरण्यगर्भ
गर्भस्थं हेमबीजं विभाविसोः।
अनन्त
पुण्य फलदमतः शांतिं प्रयच्छ मे॥
विशेषार्थ्य मन्त्र:
नमस्ते
देवदेवेशि नमस्ते धरणीधरे।
नमस्ते
जगदाधारे अर्घ्यं च प्रति गृह्यताम्।
वरदत्वं
वरं देहि वांछितं वांछितार्थदं।
अनेन
सफलार्धेण फलादऽस्तु सदा मम।
गतं
पापं गतं दुःखं गतं दारिद्रयमेव च।
आगता
सुख सम्पत्तिः पुण्योऽहं तव दर्शनात्॥
हाथ में जल लेकर मन्त्र जप करने का संकल्प
करें। आगे दिये गये पंचांगुली मन्त्र का 'स्फटिक
माला' से 7 दिन तक जप करें।
मन्त्र:
ॐ ठं
ठं ठं पंचांगुलि भूत भविष्यं दर्शय ठं ठं ठं स्वाहा।
पंचांगुली साधना (तृतीया)
इस विधि में शयन, ब्रह्मचर्य, नित्य स्नान, गुरु सेवा, नित्य पूजा, देवतार्चन, निष्ठा एवं पर
पवित्रता रखी जाती है। पूजन कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व मुख
शुद्धि जरूरी है। अशुद्धि तीन प्रकार की होती है।
कुआहार, असत्य वचन और कटुता। मुख
शोधन के बाद मुख्य मन्त्र का ग्यारह बार उच्चारण करना चाहिए। मन्त्र निम्न है-
श्री दुर्गा : ऐं ऐं ऐं।
श्री बगलामुखी : ऐं ह्रीं ऐं।
श्री मातंगी : ॐ ऐं ऊं।
श्री लक्ष्मी :श्रीं।
श्री त्रिपुरसुन्दरी :श्री ॐ श्रीं ॐ श्रीं ॐ।
श्री धनदा . : ॐ धूं ॐ।
श्री गणेश : ॐ गं।
श्री विष्णु : ॐ हं।
श्री पंचांगुली : ऐं ऐं ऐं।
पूरे मन्त्र को शिलारस, कपूर, कुम्कुम,
खम
और चन्दन समभाग लेकर लिखें। फिर इसका षोडशोपचार
पूजन करने के बाद दूध, घी, मधु, शर्करा और जल के
मिश्रण में छोड़ दें और पूरे अनुष्ठान पर्यन्त उसी में रहने
दें। इस प्रकार मन्त्र सिद्ध हो जाता है।
ध्यान:
'पंचांगुली महादेवी श्री सीमन्धर
शासने।
अधिष्ठात्री
करस्यासौ शक्तिः श्री त्रिदेशेशितः॥
मन्त्र:
'ॐ नमो पंचांगुली पंचांगुली परशरा
परशरी माता
मंगल
वशीकरणी लोहमय दण्डमणिनी चौंसठ काम-
विहडंनी
रणमध्ये राउलमध्ये शत्रुमध्ये दीवानमध्ये भूतमध्ये
प्रेतमध्ये
पिशाचमध्ये झोटिंगमध्ये डाकिनीमध्ये
शंखिनीमध्ये
यक्षिणीमध्ये दोषेणीमध्ये शकनीमध्ये
गुणीमध्ये
गारुणीमध्ये विनारीमध्ये दोषमध्ये दोषा-
शरणमध्ये
दुष्टमध्ये घोर कष्ट मुझ ऊपरे बुरों जो कोई
करावे
जड़े जड़ावे तत चिन्ते चिन्तावे तस माथे श्री माता
श्री
पंचांगुली देवी तणो वज्र निर्धार पड़े ॐ ठं ठंठं स्वाहा।'
गणपति पूजन, कलश पूजन,
नवग्रह
पूजन करें।
ध्यान:
पंचांगुली
महादेवी।
श्री
सीमन्धर शासने।
अधिष्ठात्री
करस्यासौ।
शक्तिः
श्री त्रिदशेशितुः॥
फिर न्यास करें-
न्यास:
ॐ
परशरि मूर्तये नमः शिरसि।
मयगले
नमः मुखे।
सुन्दरयै
नमः हृदि।
ऐं
बीजाय नमः गुहो।
सौं
शक्तये नमः पादयो।
क्लीं
कीलकाय नम: नाभौ।
विनियोगाय
नमः सर्वांगे।
करन्यास:
ॐ
ह्रीं अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ
श्रीं तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ
क्रीं मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ आं
अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ सौं
कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ॐ
ह्रीं श्रीं सौं करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादिन्यास:
ॐ
ह्रीं हृदयाय नमः।
ॐ
श्रीं शिरसे स्वाहा।
ॐ
क्रीं शिखायै वषट्।
ॐ आं
कवचाय हुम्।
ॐ सौं
नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ
ह्रीं श्रीं सौं अस्त्राय फट्।
ध्यान मन्त्र:
ॐ
भूर्भुवः स्वः श्री पंचांगुली देवीनम् ध्यायामि॥
आवाहनम्:
ॐ
आगच्छागच्छ देवेशि त्रैलोक्य तिमिरापहे।
क्रियमाणां
मया पूजां गृहाण सुरसत्तमे॥
ॐ
भूर्भुव: स्व: श्री पंचांगुली देवताभ्यो नम: आवाहनं समर्पयामि।
आसनम्:
रम्यं
सुशोभनं दिव्यं सर्वं सौख्यं कर शुभम्।
आसनंच
मया दत्तं गृहाण परमेश्वरि॥ ।
ॐ
भूर्भुव: स्व: श्री पंचांगुली देवताभ्यो नमः आसनं समर्पयामि।
पाद्यम्:
उष्णोदकं
निर्मलंच सर्व सौगन्ध संयुक्तम्।
पाद
प्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रति गुह्यताम्॥
ॐ
भूर्भुवः स्वं पंचांगुली देवताभ्यो नमः पाद्य समर्पयामि।
अय॑म्:
ॐ
अर्ध्य गृहाण देवेशि गन्ध पुष्पाक्षतैः सह।
करूणां
करु में देवि गृहणायं नमोस्तुते ।।
आचमनीयम्:
सर्व
तीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलम।
आचमन्यतां
मया दत्तं गहीत्वा परमेश्वरी॥
दहीस्नानम्:
पयसस्तु
समुद्रभूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्।
दध्यानीतं
मया देव स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
घृतस्नानम्:
नवनीत
समुत्पन्नं सर्वसन्तोष कारकम्।
वत
तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
मधुस्नानम्:
तरुपुष्प
समुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु।
तेजः
पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
शर्करास्नानम्:
इक्षुसार
समुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका।
मलापहारिका
दिव्या स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
पंचामृत स्नानम्:
पयो
दधि घृत पंच मधुशर्कर यान्वितम्।
पंचामृतं
मयानीतं स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
वस्त्रम्:
सर्वभूषाधिके
सौम्ये लोक लज्जा निवारिणे।
मयोपपादिते
तुभ्यं वाससी प्रति गृह्यताम्॥
यज्ञोपवीत:
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं
त्रिगुणं देवता मयम्।
उपवीतं
मया दत्तं गृहाण परमेश्वरि ॥
कर्पूरार्तिक्यम्:
ॐ
आराति पार्थिवऽरजः पितुर प्रायिधामभिः।
दिवः
सदाऽसि बृहती वितिष्ठ स आत्वेष वर्तते नमः।
जुपम्:
वनस्पति
रसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः।
आधेयः
सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रति गृह्यताम्॥
दीपम्:
आज्यं
च वर्तिसंयुक्तं वन्हिनां योजित मया।
दीपं
गृहाण देवेशि त्रैलोक्य तिमिरा पह॥
नैवेद्यम्:
नैवेद्यं
गृह्यतां देवि भक्तिं मे ह्यचलां कुरु।
ईप्सितं
मे वरं देहि परत्रेह परां गतिम्।।
ताम्बूलम्:
पूंगीफलं
महाद्दिव्यं नगवल्ली दलैर्युतम्।
एलादि
चूर्ण संयुक्तं ताम्बूलं प्रति गृह्यताम्॥
अखण्ड फलम्:
इदं
फल मया देवि स्थापितं पुरतस्तव।
तेन
मे सफला वाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि।
प्राण प्रतिष्ठा:
ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्य
महेश्वरा ऋषयः ऋग्यजु सामानि छन्दासि।
क्रियामय वपुः प्राण शक्तिदेवता। आंबीजम्।
ह्रीं शक्तिः। क्रौं कीलम्। प्राण प्रतिष्ठिापनेवि
नियोग।
ॐ
ब्रह्य विष्णु महेश्वरा ऋषिभ्यो नमः शिरसि।
ऋग्यजुः
सामच्छन्दोभ्यो नमः मुखे।
प्राणशक्त्यै
नमः हृदये।
आं
बीजाय नम: लिंगे।
ह्रीं
शक्त्ये नमः पादयो।
क्रौं
कीलकाय नमः सर्वांगेषु।
संकल्प:
ॐ अद्य कृतैतत्पुण्याह वाचन कर्मणः सांगता
सिध्यर्थ तत्सम्पूर्ण फल प्राप्त्यर्थ च पुण्याह
वाचकेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो यथा शक्ति मनसोद्दिष्टां दक्षिणां विभज्य दातु मवभुत्सजे।
कलश पूजा:
- जमीन पर कुम्कुम का स्वस्तिक बनाकर उस पर कलश
रखें। फिर उसमें धान्य डालें। उस पर नारियल रखकर
रक्त वस्त्र वेष्टित करें।
सरितः
सागरा: शैलास्तीया॑नि जलदा नदः।
एते
त्वा मभिषिचंतु धर्म कामार्थ सिद्धये।
सर्वेषु
धर्मकार्येषु पत्नी दक्षिणतः शुभाः।
अभिषेके
विप्र पाद प्रक्षालने चैव वामतः॥
आदित्यः
वसवो रुद्रा विश्वे देवा मरुद्गणा।
अभिषिश्चन्तु
ते सर्वे कामार्थ सिद्धये।
अमृताभिषेकोऽस्तु
इसके उपरान्त कालज्ञान मन्त्र का पाठ करने का
विधान है। यह पाठ पंचांगुली साधना में एक बार ही करें।
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