How to destroy your enemy mentally
शाबर
भैरव-साधना
अनभूत सिद्ध शाबर मन्त्र:
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ॐ काली कङ्काली महा-काली के
पुत्र कङ्काल-भैरव !
हुक्म है—हाजिर रहे, मेरा कहा तुरन्त करे। मेरा
भेजा
रक्षा करे । लान बाँ) बान
चलते के-फिरते के औसान
बाँ) । दश दिशा, दसों सूर नव-नाथ बहत्तर वीर बाँधू,
पाँच हाथ की काया, कुबेर की माया बाँध । फूल में भेज-
फूल में जाय । मेरे 'अमुक' शत्रु का कलेजा खाय । थर-
थर काँपे, हल-हल हिले, गिर-गिर पड़े। मेरा भेजा सवा
मास, सवा दिन, सवा पहर 'अमुक' को बावला न करे,
तो माता काली की शय्या पर पग
धरे। वाचा छोड़ कुवाचा
करे, तो धोबो की नाँद, चमार के कुण्ड में पड़े, रुद्र की
नेत्र की ज्वाला पड़े, पारबती के चीर पर चोट पड़े।
दुहाई काली माई की। कामरू
कामाक्षा की । गुरू गोरख-
नाथ को।
विधि : गाय के गोबर का चौका (लीपकर) देकर दक्षिण की मख करके बैठे । 'काल-रात्रि' में यह साधना करना उत्तम है। पजन में लाल कनेर का फूल, सिन्दूर, नींबू, लौंग और लड्ड आदि से। चार मुख का दिया, फूलों की माला भी रखे । १०८(108) बार मन्त्र करे और इतनी ही बार चीनी और घी मिलाकर
हवन करे। समाप्ति
पर यदि भैरव जी प्रकट हों, तो
उन्हें फलों की - अपित
करे, लड्डू का भोग दे और
प्रणाम कर उनसे कार्य सिद्ध करने
की प्रार्थना करे।
प्रयोग :
(१) मन्त्र सिद्ध हो जाने पर एक नींबू
पर , नाम सिन्दर से लिखे । २१ बार मन्त्र का
जप कर उस नींब सइयाँ
चभो दे और एक मिट्टी की छोटी - सी हण्डी में उसे। श्मशान में गाड़ दे। जब तक यह गड़ा
रहेगा, शत्रु
को भयान पीड़ा
होगी।
(२) शत्र के पहनने का कोई कपड़ा प्राप्त कर उस पर श्मशान के कोयले से शत्र का चित्र बनाए। चित्र
में प्राण - प्रतिष्ठा करे औराउ शत्र का नाम लिखे। फिर इस कपड़े पर उक्त मन्त्र का १०८ बार जब
उनसे से करे।
खैर या आक की लकड़ी जला कर इस वस्त्र को आग मन्त्र सिख तपाए। कपड़ा जलने न पाए । शत्रु पागल हो
जाएगा। अच्छा करने भूत-प्रेत, पागल के लिए गधे के मूत्र से उस कपड़े को
धोकर सुखा दे।
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