ध्वनि विज्ञान (मंत्र)
Dhawni vigyan
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कालांतर में मंत्र विद्या ने विकसित होकर 'तंत्र'
का
आयाम प्रस्तुत किया। तंत्र का विकसित रूप ही मंत्र है।
कालांतर में यह मंत्र विज्ञान दो भागों में बांटा गया-भौतिक
मार्ग एवं आध्यामिक मार्ग। 'मंत्र' का
अर्थ है ध्वनि विज्ञान। यह एक अतिसूक्ष्म, जटिल किंतु अवश्य
प्रभावशाली साधना पद्धति है। इसके द्वारा संसार में कुछ भी देखा,
सुना
और किया जा सकता है। मंत्र, तंत्र
और यंत्र साधना पद्धतियां प्रभावशाली हैं। तीनों का ही प्राचीन
काल में विकास हुआ है।
सर्वांग
ओउम् विनियोगाय नमः क्षमः।
मम
मायाहि मायाहि त्वरितं चक्षुरोगान् क्षमः॥
मंत्र ध्वनि विज्ञान पर आधारित शुद्ध वैज्ञानिक
क्रिया है। प्रत्येक स्वर या ध्वनि का अपना
प्रभाव और आघात होता है। बिजली कड़कती है, बादल गरजते हैं
तो हम चौंक पड़ते हैं । गोली या बम की आवाज अथवा कोई भी तेज भास हमारे शरीर पर गहरा प्रभाव डालता है और हल्की ध्वनि का साधारण आघात
होता है, पर आघात अवश्य
ही होता है। यह निर्विवाद सत्य है। ध्वनि की इसी
आघात संरचना पर मंत्रों की रचना की गई है। उदाहरण के लिए आप किसी मंत्र का सस्वर पाठ करें। उच्चारण करते समय नाना प्रकार की ध्वनियां होंगी, आपके
फेफडे क्रियाशील होंगे।
'स्वाहा' शब्द में आपका मुंह पूरा खुलेगा। 'ओउम्'
में
दोनों होंठ खुलकर फिर मिल जाएंगे। 'नमः'
में
दोनों होंठ मिल-बिछुड़कर रहेंगे। 'शिवाय' में
होंठ बिना मिले मात्र ध्वनि रह जाएगी। इसी
प्रकार का प्रभाव नाना । उच्चारण का होता
है। अतएव सारा का सारा विधान ध्वनि/स्वर विज्ञान पर आधारित है।
अतएव तांत्रिक को मंत्र विद्या का भी समुचित ज्ञान होना, आवश्यक है। यंत्र
विज्ञान के बाद मंत्र भी तंत्र की एक प्रमुख
शाखा है। यह बात भली-भांति समझ लेनी चाहिए। तंत्र शास्त्र में मंत्रों की पृथक-पृथक जातियां बतलाई गई हैं। उनका
विवरण
इस प्रकार है-
>एकाक्षरीय
मंत्र -कर्तरी > आठ
अक्षरी मंत्र
शूल
>दो
अक्षरीय मंत्र- कूची
> नौ अक्षरी मंत्र वज्र या शक्ति
>तीन
अक्षरीय मंत्र -मुद्गर > दस अक्षरी मंत्र परशु
>चार
अक्षरीय मंत्र-
मूसल > ग्यारह
अक्षरी मंत्र चक्र
>पांच
अक्षरीय मंत्र- क्रूर > बारह अक्षरी मंत्र कुलिश
>छ:
अक्षरीय मंत्र -श्रृंखला
> तेरह अक्षरी
मंत्र नराच
>सात
अक्षरीय मंत्र -क्रकच-
> चौदह अक्षरी मंत्र
भुशुण्डी
बीज मंत्र
देवी/देवता
आं
ह्रीं क्रौं -
भुवनेश्वरी
ॐ
ह्रीदुं दुर्गायै नमः - दुर्गा
महिषमर्दिनी
स्वाहा - महिषमर्दिनी
ॐ
दुर्गे दुर्गे रक्षिणिं स्वाहा - जय दुर्गा
वद
वद वाग्वादिनी स्वाहा - वागीश्वरी
ऐं
क्लीं नित्यक्लिन्नान्मे मुञ्चस्व स्वाहा - नित्या
श्रीं
ह्रीं क्लीं - त्रिपुरा
ॐ
ह्रीं हुं खे च छे क्ष स्त्री हुँ क्षे ह्रीं फट् - त्वरिता
ह्रीं
नमो भगवती माहेश्वरी अन्नपूर्णे स्वाहा - अन्नपूर्णा
ज्वल,
ज्वल
शूलिनी दुष्ट ग्रह हुं फट् स्वाहा - शूलिनी
श्रीं
- लक्ष्मी
ग्लं
- हरिद्रा गणेश
ॐ
घृणिः सूर्याय नमः - सूर्य
ॐ
नारायणाय नमः - विष्णु
ॐ
सच्चिदेकं ब्रह्म - ब्रह्मा
ह्रीं
श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा - शक्ति
ह्रीं
श्रीं क्रीं - शक्ति
परमेश्वरी
स्वाहा - शक्ति
क्लीं
परमेश्वरी स्वाहा - शक्ति
ह्रीं
श्रीं क्लीं स्वाहा - शक्ति
इस
प्रकार मंत्रों का अपना महत्व है। यंत्र शक्ति के द्वारा नियत कार्य शीघ्र और अवश्य प्राप्त होते हैं । तंत्र, मंत्र, यंत्र
इन ताना माध्यमा से जब कोई कार्य विशेष किया जाता है तो वह उत्तम और शीघ्र फलदायी होता है । त्रिशक्ति जब एक साथ किसी कार्य की संपन्नता के लिए प्रयोग में लाई जाएगी तो वह भला कैसे न होगा। आप मंत्रशक्ति में पारंगत होने का प्रयत्न करें। मंत्र शक्ति
में के पश्चात् आप शेष दोनों विद्याओं को
स्वतः ही समझ जाएंगे।